पवन देव हवा के देवता है। पवन देव का महत्व हिंदू धर्म में बहुत ही ज्यादा है ऐसी मान्यता है की की पवन देव हनुमान जी और महा बलवान भीम के आध्यात्मिक पिता है। पवन देव को वायु देव के नाम से भी जाना जाता है।
एक बार हनुमान जी बचपन में बालपन की अठखेलियों से प्रेरित होकर सूर्य देव को पकड़ने के लिए आसमान में उड़ गए और सूर्य देव को फल समझकर निगलने का प्रयास किया। इंद्र ने हनुमान जी को सूर्य को निगलने से रोकने के लिए हनुमान जी के ऊपर बज्र से प्रहार किया, जिसकी वजह से हनुमान जी आकाश से अचेत होकर जमीन पर गिर पड़े। जब वायु देव को हनुमान जी के अचेत होने की जानकारी प्राप्त हुई। तब उन्होंने सारी सृष्टि को प्राण देने वाली वायु को रोक लिया। जिसकी वजह से सारी सृष्टि में हाहाकार मच गया। तब ऐसी स्थिति में स्वर्ग के सभी देवताओं ने और इंद्र ने वायु देव के क्रोध को शांत किया और संसार की वायु का संचार करने का निवेदन किया। जब वायु देव का क्रोध शांत हुआ तब उन्होंने संसार को प्राण देने वाली वायु को फिर से संचारित किया। इससे प्रसन्न होकर इंद्र और ब्रह्मदेव ने हनुमान जी को बहुत प्रकार के वरदान दिए। जिसकी वजह से हनुमान जी इस दुनिया में अपराजिता योद्धा बन गए और उन्हें विश्व का कोई भी अस्त्र-शास्त्र प्रभावित नहीं कर सकता।
पवन देव की पत्नी का नाम
पवन देव की पत्नी का नाम देवी स्वास्थी है। पवन देव की पत्नी प्रजापति दक्ष की बेटी है। सृष्टि में मौजूद वायु का नियंत्रण पवन देव जी के द्वारा होता है, पवन देव जी हिरण पर सवारी करते हैं। पवन देव दिगपाल देवताओं की श्रेणी में आते हैं। दिगपाल देवता उन्हें कहा जाता है, जिन्हें दिशाओं का नियंत्रित करने की जिम्मेदारी दी गई है। 10 दिशाओं के 10 दिगपाल हैं। वायु देव वायव्य दिशा के स्वामी है। पवन देव को वायु देव या फिर मारुति भी कहा जाता है।
पवन देव के पिता का नाम
पवन देव इस सृष्टि के सृष्टि के निर्माण करता भगवान ब्रह्मा के पुत्र हैं। पवन देव के एक पुत्री भी है, पुत्री का नाम इला है, पवन देव की पुत्री इला की शादी राजा ध्रुव से हुई थी। पवन देव काफी शक्तिशाली देवता है, एक बार नारद के उकसाने में आकर पवन देव ने सुमेर पर्वत का शिखर तोड़कर उसे समुद्र में फेंक दिया था और आगे चलकर समुद्र में फेंका हुआ सुमेर का वह शिखर लंका पुरी के नाम से विख्यात हुआ।
पवन देव भगवान से प्रेरित होकर माधवाचार्य के रूप में भी इस धरती में अवतरित हो चुके हैं और बद्रीका आश्रम में वेदव्यास जी की सेवा में रहा करते थे। पवन देव महान शक्ति के स्वामी है, लेकिन फिर भी उनके अंदर घमंड लेशमात्र भी नहीं है। यह एक विनम्र और सौम्य देवता है जो की बड़ी ही श्रद्धा के साथ भगवान विष्णु की पूजा और उनके विभिन्न नाम का जप किया करते हैं।