किसी स्थान पर कबूतरों का एक जोड़ा रहता था। एक दिन ऐसी आँधी आई कि उनके घोंसले का एक-एक तिनका बिखर गया । कबूतरी ने कहा, “अब हम घोंसला कहाँ बनाएँ ?” कबूतर बोला, “हम अपना नया घोंसला उस खंड़हर में बनाएँगे । खाने को वहाँ दाने बहुत हैं और पीने को नदी का पानी ।”
कबूतरी ने पूछा, “क्या वहाँ तुम्हारा कोई मित्र है ?”
कबूतर ने कहा, “नहीं।”
कबूतरी बोली, “सयानों का कहना है कि जहाँ अपना कोई मित्र न रहता हो, वहाँ एक क्षण भी नहीं रहना चाहिए भले ही वहाँ सोने-चाँदी की वर्षा क्यों न होती हो। यदि वहाँ घोंसला बनाना है, तो पहले मित्र बनाओ।”
कबूतर के दिल में यह बात बैठ गई। वह मित्र बनाने के लिए चला। पास ही उसने देखा कि कुछ मधुमक्खियाँ गुलाब की फुलवारी का मार्ग भूल गई हैं और बबूलों पर भटक रही हैं। कबूतर ने उन्हें फुलवारी का मार्ग बताया, तो मधुमक्खियाँ बोलीं, “जो संकट में काम आए, वही सच्चा मित्र होता है। आज से तुम हमारे मित्र हो। यदि कभी आवश्यकता पड़े, तो हमें अवश्य याद करना ।”
कबूतर बहुत खुश हुआ और आगे बढ़ गया, कुछ दूर पर ही एक बंदरिया अपने बच्चे को सुला रही थी। बच्चे को नींद नहीं आ रही थी। कबूतर ने ‘गुटर गूँ’ की लोरी गाई और वह अपने पंखों से हवा देने लगा, तो बंदरिया के बच्चे को नींद आ गई। यह देखकर बंदरिया बोली, “जो बिगड़े काम बनाए, वही अच्छा मित्र होता है। आज से तुम मेरे मित्र हुए। यदि कभी आवश्यकता पड़े, तो मुझे याद करना।”
कबूतर ने दो मित्र बना लिए थे और वह अब मन ही मन बहुत खुश था। फिर वह खंडहर में घोंसला बनाकर कबूतरी के साथ रहने लगा। उसी घोसले मे कबूतरी ने अंडे दिये जिनसे बच्चे निकले, वो बच्चे भी उसी घोसले में रह रहे थे। एक दिन कुछ लोग भटककर वहाँ आ पहुँचे। अँधेरा हो चला था। उन लोगों ने खंडहर में रात बिताने का निश्चय किया। उन्होंने नीचे धरती पर ठीक उसी जगह चूल्हा सुलगाया, जहाँ ऊपर कबूतर का घोंसला था। कड़आ धुआँ घोसले में पहुँचा, तो कबूतर के बच्चे चिल्ला उठे ।
उनका शोर सुनकर एक आदमी ने कहा, “लगता है, घोंसले में किसी पक्षी के बच्चे हैं।”
दूसरा बोला, “देखते क्या हो ? ऊपर चढ़ो और सब बच्चों को उतार लाओ।”
तीसरा बोला, “मुझे बहुत भूख लगी है। मैं तो उनको भूनकर खाऊँगा ।”
चौथा बोला, “अच्छा हो कि बड़े-बड़े बच्चे हों, ताकि हमारी भूख मिटे ।”
ऊपर बैठी कबूतरी ने कबूतर से कहा, “सुनते हो, ये लोग बच्चों को पकड़कर खाना चाहते हैं। जब तक ये लोग ऊपर नहीं चढ़ते, तब तक अपने प्यारे बच्चों को बचाने का कोई उपाय करना चाहिए। तुमने जरा भी देर की, तो एक भी बच्चे को जीवित नहीं पाओगे। हम सबके प्राण बचाने के लिए उपाय करो। ऐसे ही समय पर मित्र काम आते हैं। जल्दी जाओ और उन्हें सहायता के लिए बुला लाओ ।”
कबूतर तेजी से गया। बंदरिया और मधुमक्खियों को बुला लाया। इस बीच एक आदमी ऊपर चढ़ चुका था । वह घोंसले में अपना हाथ डालने ही वाला था कि मधुमक्खियों ने बिजली की-सी फुर्ती से काम किया। वे एक साथ उस आदमी पर झपटीं और उसे डंक मारने लगीं। वह आदमी औंधे मुँह धरती पर धड़ाम से गिर पड़ा। अब कुछ आदमी अपने घायल साथी को उठाने के लिए आगे बढ़े। इतने में बंदरिया ने मौका पाकर उनकी गठरी नदी में फेंक दी। गठरी में उन लोगों के जीवन भर की कमाई थी। फिर भला, वे उसे नदी में बहते कैसे देख सकते थे ? वे कबूतर के बच्चों को भूल गए और अपनी गठरी पकड़ने के लिए नदी में कूद पड़े। वे लोग फिर वहाँ लौटकर नहीं आए। इस तरह मित्रों के कारण कबूतर के बच्चों की जान बची ।
कहानी से संबन्धित प्रश्न और उत्तर
1. कबूतर का घोंसला किस कारण बिखर गया?
कहानी में यह स्पष्ट रूप से नहीं बताया गया है कि कबूतर का घोंसला किस कारण बिखर गया था। लेकिन, यह संभावना है कि तेज आँधी के कारण घोंसला बिखर गया था।
2. कबूतर ने किनको मित्र बनाया?
कबूतर ने दो मित्र बनाए, पहला मित्र मधुमक्खियाँ थी, जब मधुमक्खियाँ गुलाब की फुलवारी का रास्ता भटक गई थीं, तब कबूतर ने उनको रास्ता दिखाया था।
और दूसरा मित्र बंदरिया थी, जब बंदरिया का बच्चा सो नहीं पा रहा था, तब कबूतर ने उसे लोरी गाकर सुला दिया था।
3. कबूतर के बच्चे क्यों चिल्ला उठे?
कबूतर के बच्चे इसलिए चिल्ला उठे क्योंकि नीचे जल रही आग से निकलने वाला धुआँ घोंसले में घुस रहा था और उन्हें घुटन हो रही थी।
4. कबूतर के बुलाने पर मधुमक्खियों ने क्या किया?
जब कबूतर ने मधुमक्खियों को बुलाया, तो वे तुरंत उड़कर उस आदमी पर झपट पड़ीं और उसे डंक मारने लगीं जिसके कारण वह धरती पर गिर पड़ा।
5. बंदरिया ने गठरी कहाँ फेंक दी?
कबूतर और उसके बच्चों को बचाने के लिए, बंदरिया ने उन लोगों की गठरी नदी में फेंक दी जिसमें उनकी सारी कमाई थी।