मगध साम्राज्य का उदय,    मगध के उत्थान  का विवरण,     उदयन तथा उसके उत्तराधिकारी,     शिशुनाग और नन्द वंश,     शिशुनाग वंश का अंत कैसे हुआ,     मगध साम्राज्य का पतन कैसे हुआ, मगध साम्राज्य का संस्थापक कौन था

मगध साम्राज्य का उदय एवं पतन पर टिप्पणी लिखिए।

मगध साम्राज्य का उदय

मगध साम्राज्य का उदय लगभग 700 ईसा पूर्व हुआ था। उस समय मगध एक छोटा राज्य था, लेकिन यह जल्द ही एक शक्तिशाली राज्य बन गया। मगध एक शक्तिशाली राज्य था। उसका कार्यकाल छठी सदी ईसा पूर्व का था। आधुनिक बिहार राज्य के पटना और गया जिलों के क्षेत्र में यह विस्तृत था। इसकी राजधानियाँ क्रमशः गिरिव्रज, राजगृह और पाटलिपुत्र रहीं। बौद्ध, जैन और पौराणिक साहित्य में मगध का विस्तृत वर्णन मिलता है।

महाभारतकालीन बार्हद्रथ नामक वीर और महत्वाकांक्षी व्यक्ति ने इसकी स्थापना की। इसका पुत्र जरासंघ क्रूर, शक्तिशाली और महत्वकांक्षी राजा था। द्वारिकाधीश कृष्ण और पांडवों ने इसका अन्त कर दिया था। बार्हद्रथ वंश की शक्ति क्षीण होने पर मगध में हर्यक या हेयक वंश की स्थापना बिम्बिसार ने की।

500 वर्ष ईसा पूर्व बिम्बिसार मगध का राजा बना, जिसकी उम्र मात्र 15 वर्ष थी, किन्तु आगे वह अपने जीवन में वीर योद्धा, सफल सेनानी तथा कूटनीतिज्ञ सिद्ध हुआ। उसने युद्धों और वैवाहिक सम्बन्धों द्वारा शक्ति, सम्मान तथा प्रतिष्ठा में वृद्धि की। बौद्ध तथा जैन ग्रंथों में उसके साम्राज्य को शक्तिशाली, समृद्ध तथा विस्तृत बताया गया है।

बिम्बिसार एक धर्म सहिष्णु, उदार तथा प्रजावत्सल राजा था। वह महावीर स्वामी और गौतम बुद्ध दोनों के सम्पर्क में रहा। उसने दोनों धर्मों के लिए राजकोष से पर्याप्त मात्रा में दान दिया। उसने राजगृह को मगध की राजधानी बनाया, उसका प्रशासन और न्याय कठोर था। विद्वानों, धर्माचार्यों और कलाकारों का वह आश्रयदाता था, किन्तु दुर्भाग्य से उसके पुत्र अजातशत्रु ने राजा बनने की महत्वाकांक्षा तथा गृहकलह के चलते बिम्बिसार का वध कर दिया।

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ईसा पूर्व 493 में अपने पिता का वध कर अजातशत्रु मगध का सम्राट बना। यह भी महत्वाकांक्षी, वीर, योद्धा तथा सफल सेनानी था। उसने अपने साम्राज्य की शक्ति और सीमाओं का विस्तार किया। वह बौद्ध और जैन दोनों धर्मों का समान आदर करता था, किन्तु बौद्ध धर्म के प्रति उसका अधिक झुकाव था। उसने राजगृह में एक बौद्ध स्तूप और सभागृह बनवाया। बिम्बिसार की भाँति अजातशत्रु के पुत्र उदयन ने भी अपने पिता का वध कर दिया और स्वयं सम्राट बन बैठा।

उदयन तथा उसके उत्तराधिकारी

मगध का साम्राज्य अब तक अति विशाल हो गया था, अतः उदयन ने राजधानी के लिए पाटलिपुत्र नामक नया नगर बसाया। इसे वर्तमान में पटना कहा जाता है। उदयन के उत्तराधिकारी अयोग्य थे। अतः षड्यंत्र तथा गृहकलह का लाभ लेकर शिशुनाग नामक एक राज्याधिकारी ने साम्राज्य पर कब्जा कर लिया।

शिशुनाग और नन्द वंश

शिशुनाग वीर योद्धा और साहसी सेनानी था। उसने मगध साम्राज्य का अत्यधिक विस्तार कर वत्स, अवन्ति और कौशल को अपने साम्राज्य मे मिला लिया। शिशुनाग की मृत्यु के बाद उसके प्रपौत्र महापद्मानंद ने 363 ईसा पूर्व नंद वंश की नींव डाली।

महापद्मानंद ने मगध का अत्यधिक विस्तार किया। प्रजा पर अत्याचार तथा उचित- अनुचित तरीकों से उसने राजकोष में अतुल सम्पत्ति संग्रहित की। प्रजा उससे घृणा करती थी। इस वंश का अन्तिम राजा घननंद था। चंद्रगुप्त मौर्य और चाणक्य ने उसका अन्त कर मगध में मौर्य वंश की स्थापना की।

शिशुनाग वंश का अंत कैसे हुआ?

शिशुनाग वंश का अंत 345/344 ई. पू. में हुआ। शिशुनाग वंश के अंतिम शासक महानन्दि थे। उनके नाजायज बेटे महापद्म नन्द ने महानन्दि की हत्या कर साम्राज्य पर कब्जा कर लिया और नंद वंश की स्थापना की। महानन्दि एक अयोग्य शासक थे। उन्होंने अपने करों को बढ़ा दिया और लोगों पर अत्याचार किया। इससे लोगों में असंतोष बढ़ गया। महापद्म नन्द ने इस अवसर का लाभ उठाया और महानन्दि को मारकर सत्ता पर कब्जा कर लिया। महापद्म नन्द एक महत्वाकांक्षी और कुशल शासक थे। उन्होंने एक शक्तिशाली सेना का निर्माण किया और अपने साम्राज्य का विस्तार किया। उन्होंने मगध को एक विशाल साम्राज्य में बदल दिया। इस प्रकार, शिशुनाग वंश का अंत महापद्म नन्द द्वारा किया गया।

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मगध साम्राज्य के पतन के कारण

मगध साम्राज्य का पतन कई कारणों से हुआ। इनमें प्रमुख कारणों में शामिल हैं:

  1. अयोग्य उत्तराधिकार: मौर्य साम्राज्य के संस्थापक सम्राट अशोक के बाद उनके उत्तराधिकारी अयोग्य और कमजोर थे। उन्होंने साम्राज्य की मजबूती को बनाए रखने में असमर्थ रहे।
  2. प्रांतीय विद्रोह: मगध साम्राज्य बहुत बड़ा था। इसके कई प्रांत थे। इन प्रांतों में अक्सर विद्रोह होते रहते थे। ये विद्रोह साम्राज्य की शक्ति को कम करते गए।
  3. बाहरी आक्रमण: मगध साम्राज्य की सीमाओं पर कई शक्तिशाली राज्य थे। इन राज्यों ने कई बार मगध पर आक्रमण किया। इन आक्रमणों ने साम्राज्य को कमजोर किया।
  4. नौकरशाही का दुरुपयोग: मौर्य साम्राज्य में एक बड़ी और शक्तिशाली नौकरशाही थी। कुछ नौकरशाहों ने अपनी शक्ति का दुरुपयोग किया और साम्राज्य को कमजोर किया।
  5. धार्मिक विवाद: मौर्य साम्राज्य में कई धर्म थे। इन धर्मों के बीच अक्सर विवाद होते रहते थे। इन विवादों ने साम्राज्य की एकता को कमजोर किया।

इन कारणों से मगध साम्राज्य का पतन हुआ और भारत में एक नए युग का आरंभ हुआ।

वर्तमान भारत में मगध कहां स्थित है?

वर्तमान भारत में मगध का क्षेत्रफल बिहार राज्य के दक्षिणी भाग में स्थित है। इसमें गया, नालंदा, राजगीर, और पटना जिले शामिल हैं। प्राचीन काल में, मगध का क्षेत्रफल वर्तमान बिहार राज्य के अलावा, उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, और पश्चिम बंगाल के कुछ हिस्सों को भी शामिल करता था।

मगध साम्राज्य का संस्थापक कौन था

मगध साम्राज्य का संस्थापक हर्यक वंश के बिम्बिसार थे। बिम्बिसार ने लगभग 544 ईसा पूर्व में मगध साम्राज्य की स्थापना की।

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उन्होंने अपने कौशल और कूटनीति से मगध साम्राज्य का विस्तार किया। उन्होंने कई प्रांतों को जीतकर मगध साम्राज्य को भारत के सबसे शक्तिशाली साम्राज्यों में से एक बना दिया। बिम्बिसार एक कुशल शासक थे। उन्होंने एक मजबूत सेना का निर्माण किया और एक न्यायपूर्ण प्रशासन की स्थापना की। उन्होंने कला, साहित्य और संस्कृति को भी बढ़ावा दिया। मगध साम्राज्य के संस्थापक बिम्बिसार को भारत के महान शासकों में से एक माना जाता है।

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