भूत की कहानी : ट्रेन का खौफनाक सफर

भूत की कहानी : ट्रेन का खौफनाक सफर

यह घटना उस समय की है जब मैं, बकुल और प्रदीप, तीन दोस्त, शिमला की सर्द वादियों में घूमने के लिए उत्साहित थे। हमें जाना था, और जल्दबाजी में हमने तुरंत ट्रेन टिकट बुक किया और रेलवे स्टेशन की ओर निकल पड़े। उस वक्त सबकुछ सामान्य था, पर मुझे नहीं पता था कि यह यात्रा मेरे जीवन की सबसे डरावनी और रहस्यमय यात्रा बनने वाली है।

जैसे ही हम रेलवे स्टेशन पहुंचे, ट्रेन प्लेटफार्म पर खड़ी थी, और चलने का समय हो चला था। बकुल और प्रदीप तो ट्रेन में चढ़ गए, लेकिन मैं नाश्ता पैक करवाने के चक्कर में पीछे रह गया। स्टेशन पर हल्की ठंडक के बीच हलचल थी, पर मेरा ध्यान पूरी तरह उस छोटे से काम पर था। फिर अचानक मुझे बहुत जोर से बाथरूम की जरूरत महसूस हुई। जल्दबाजी में, मैं स्टेशन के कोने में एक पुरानी, टूटी-फूटी दीवार के पास पहुंचा और जैसे ही मैं पिशाब करने लगा, अजीब सी घटना घटने लगी।

उस समय ठंडा हवा का झोंका आया, और मेरे कानों में एक अजीब सी सिटी गूंजने लगी। फिर अचानक, एक अनदेखी शक्ति ने मेरे चेहरे पर जोर से थप्पड़ मारा। मेरे हाथों से नाश्ते का पैकेट हवा में उछल कर बिखर गया। मेरे रोंगटे खड़े हो गए। मैंने घबराकर चारों ओर देखा, पर वहां कोई नहीं था। मेरी नजर उस पत्थर पर पड़ी जिस पर मैंने पिशाब किया था। उस पत्थर से धुंआ उठ रहा था, जैसे वह किसी रहस्यमय आग में जल रहा हो।

यह देखकर मैं भौचक्का रह गया। घबराहट के मारे मैं ट्रेन की ओर भागा और बड़ी मुश्किल से चलती ट्रेन में चढ़ पाया। बकुल और प्रदीप दोनों मुझे देखकर गुस्से में बोले, “तू कहाँ मर गया था? अगर ट्रेन छूट जाती तो?” लेकिन मैं उन्हें क्या बताता कि मुझे किस अदृश्य शक्ति ने थप्पड़ मारा है और पत्थर से धुंआ निकल रहा था। मैंने डरते-डरते उन्हें पूरी बात बताई, पर वे दोनों हंसने लगे, जैसे कुछ भी हुआ ही नहीं था।

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रात गहराने लगी थी। ट्रेन की धीमी आवाज, बाहर की काली स्याह रात और अंदर की हल्की रौशनी ने माहौल को और भी रहस्यमय बना दिया था। हम तीनों ने खाना ऑर्डर किया और थोड़ी देर में सो गए। प्रदीप और बकुल ऊपरी बर्थ पर सोए थे, और मैं खिड़की के पास नीचे लेटा हुआ था। लगभग रात के तीन बजे होंगे, ट्रेन एक वीरान इलाके में अचानक रुक गई। मेरी आँख खुली तो मैंने खिड़की से बाहर झाँका।

बाहर अंधेरा था, पर ट्रेन की बत्तियों की हल्की रोशनी में मैंने देखा कि बकुल बाहर खड़ा था, और उसे एक विकराल दिखने वाले आदमी ने गले से पकड़ रखा था। मेरा दिल धक-धक करने लगा। घबराहट में मैंने प्रदीप को जगाना चाहा, पर उसकी सीट खाली थी। मुझे समझ नहीं आया कि आखिर हो क्या रहा है। फिर मैंने खिड़की से दोबारा देखा, तो वहाँ चुड़ैल जैसी डरावनी औरत प्रदीप के ऊपर खड़ी थी, जिसने उसकी छाती पर अपना पैर रखा हुआ था। प्रदीप जमीन पर पड़ा कराह रहा था।

मैं घबराहट में बर्थ से कूदकर भागा और ट्रेन से नीचे उतर आया। जैसे ही मैंने उस जगह पहुंचने की कोशिश की, बकुल और प्रदीप अचानक गायब हो गए। उनकी जगह अब वही विकराल आदमी और चुड़ैल मेरे सामने आ खड़े हुए। उन्होंने मुझे अपनी भयानक आंखों से देखा और कहा, “तूने हमारी जगह को गंदा किया है, अब तुझे इसकी सजा मिलेगी। हम तेरा खून लेकर अपने ठिकाने को साफ करेंगे।”

उनके शब्दों ने मेरी आत्मा को कंपा दिया। मेरी आवाज हलक में अटक गई थी। मैं जैसे-तैसे उनसे बचने की कोशिश कर रहा था, पर मेरा शरीर हिलने का नाम नहीं ले रहा था। वे मुझे जंगल की ओर खींचने लगे। मेरी चीख गले में ही घुट गई थी। तभी, ट्रेन का साइरन बजा, और वे दोनों मुझे छोड़कर भाग गए। मैंने दौड़कर ट्रेन पकड़ी और अंदर आकर कांपते हुए अपनी सीट पर बैठ गया। मेरे दिल की धड़कनें तेज थीं, पर मेरे अंदर इतनी हिम्मत नहीं बची थी कि मैं किसी को कुछ बता पाऊँ।

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अगली सुबह जब मैंने बकुल और प्रदीप को अपनी सीट पर देखा, तो मैं हैरत मे पड़ गया क्योंकि कल रात को ये लोग अपने बर्थ से गायब थे। उन्होंने कहा कि वे रातभर अपनी बर्थ पर ही सोए रहे। पर मैंने उन्हें ट्रेन से बाहर देखा था! यह घटना मेरे लिए अब भी रहस्य बनी हुई है।

शिमला की यात्रा तो हमने पूरी कर ली, लेकिन मेरे मन से उस रात का खौफ कभी नहीं निकल सका। आज भी ट्रेन का साइरन सुनते ही मेरे अंदर डर की वही लहर दौड़ जाती है।

हर रात को मुझे सपने में विकराल रूप वाला भूत और चुड़ैल दोनों ही दिखते थे, मैं पसीने से लथपथ होकर हर रात 3 बजे ही नींद से उठ जाआ करता था। ऐसा एक महीने तक चला जब मुझसे सहा नहीं गया तब मैंने ये बात अपने पापा को बताई तब पापा ने ये बात सुनते ही मुझे रेलवे स्टेशन ले गए और नई झाड़ू और बाल्टी लेकर उन्होने वह जगह मुझसे साफ कारवाई जहां पर मैंने पेसाब किया था। उस रात से फिर मुझे कभी भी उन दोनों भूत और चुड़ैल का सपना नहीं आया। पापा ने बताया की उस स्थान का संबंध किसी पुराने समय के किसी व्यक्ति से रहा होगा, जिसे इस दुनिया से मुक्ति नहीं मिल पाई हैं और तुमने उनके उस स्थान को गंदा किया था। इसलिए वो तुम्हें परेशान कर रहे थे।

इस घटना के बाद से अब मुझे कभी भी पेसब करना होता हैं तो मैं घर के बाथरूम का इस्तेमाल करता हूँ, और अगर घर के बाहर हूँ तो पब्लिक बाथरूम का इस्तेमाल करता हूँ, खुले मे बाथरूम नहीं करता। और आप लोग भी खुले में भूलकर भी पेसाब मत करना। स्वच्छ भारत स्वस्थ भारत।

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