किसी गांव में एक बहुत ही पहुंचे हुए संत रहा करते थे। एक दिन गांव का एक व्यापारी उनके पास दर्शन करने आया और दर्शन करने के बाद संत से बोला की – “हे महाराज! मैं अपने परिवार के भरण-पोषण के लिए धन कमाने दूसरे देश जा रहा हूं मैं अपनी इस यात्रा में सफल हो जाऊं ऐसी आशा से मैं आपके दर्शन करने आया हूं।”
यह सुनकर संत ने उस व्यापारी को अपना आशीर्वाद दिया, और उससे कहा कि – “तुम जिस मनोकामना से दूसरे देश जा रहे हो तुम्हारी वह मनोकामना जरूर पूरी हो, ऐसा मैं भगवान से प्रार्थना करता हूं।”
लेकिन पाँच दिन बाद संत की मुलाकात फिर उस व्यापारी से हुई तो संत ने व्यापारी से पूछा कि – “आप तो व्यापार के लिए बाहर जाने वाले थे, फिर इतनी जल्दी आप कैसे वापस आ गए?”
व्यापारी ने संत से कहा – “जी महाराज! मैं व्यापार के लिए यात्रा पर निकल गया था, लेकिन एक जगह मैं आराम के लिए रुका तो मैंने एक ऐसी घटना देखी, जिसने मेरे विचार को बदल दिया और मैंने अपनी यात्रा को वहीं पर रोक कर वापस लौट आया।”
संत ने पूछा – “ऐसी कौन सी घटना आपने देखी?”
तब व्यापारी ने कहा कि -“मैं आराम करने के लिए एक पेड़ के नीचे लेट गया था। तभी मैंने देखा एक पक्षी अपने चोंच में दाना दबाकर, उस पेड़ में बैठे एक दूसरे अपंग पक्षी को भोजन करा रहा है। मैं वहां कुछ देर और ठहर तो मैंने देखा कि फिर से वह पक्षी अपने चोंच में दाना दबाकर उसी पेड़ पर आया और फिर से अपंग पक्षी को भोजन कराया, तब मुझे लगा जब इस वीरान जंगल में भगवान किसी अपंग पक्षी की सहायता कर सकता है तो फिर मुझे भी इतनी परेशान होने की आवश्यकता नहीं है। यहां रहकर भी भगवान मेरे लिए कोई ना कोई उपाय जरूर करेगा, जिससे मेरे घर का भरण-पोषण सुचारू रूप से चलता रहेगा और इसलिए मैं अपनी यात्रा को रोक कर वापस आ गया।”
संत ने मुस्कुराते हुए कहा -“दुख की बात ये है कि आपने अपाहिज परिंदा बनना पसंद किया, लेकिन ऐसा परिंदा बनने के बारे मे नहीं सोचा जो कड़ी मेहनत से अपनी रोज़ी-रोटी की तलाश कर रहा था और साथ ही साथ दूसरे लाचार परिंदे का भी पेट भर रहा था। इस दुनिया में बहुत से ऐसे बेबस औऱ लाचार लोग हैं, जिन्हें मदद की जरुरत है। प्रयास हमेशा मदद देने की रहनी चाहिए लेने की नहीं।”
व्यपारी संत की बात सुन कर संत के चरणों में गिर गया और उसे अपनी गलती का एहसास हो गया।
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