किशनपुर में एक किसान था भोला। नाम के अनुरूप ही भोला सरल और ईमानदार था। वह गाँव में अकेला ही रहता था। दो लड़के थे, जो शहर में मामा के पास रहकर पढ़ रहे थे। भोला बहुत मेहनती था। दो-चार बीघे खेती थी, उसी में जमकर मेहनत करता। उसकी मेहनत का ही नतीजा था कि जब फसल तैयार होती, तो देखने वालों का जी जुड़ाँ जाता।
भोला के पास दो बैल थे। घर के आगे पड़े छप्पर में एक किनारे दो नांदे गड़ी थी। दोनों उसी में मुँह मारा करते थे। दोनों हृष्ट- पुष्ट थे। मजबूत पुट्ठे और चमकदार त्वचा देखकर लोग भोला की किस्मत पर रश्क खाते। भोला को भी इनके पीछे कड़ी मेहनत करनी पड़ती थी। अच्छी खिलाई-पिलाई, सेवा-टहल से ही तो दोनों बैल आस-पास के गावों में अपनी धाक जमाए थे।
वैसे तो दोनों बैल भोला का कहा खूब मानते थे, पर उनमें से एक बड़ा गुस्सैल था। भोला को छोड़कर दूसरा कोई उसकी नांद के पास फटकता तो उसकी शामत समझो। नथुनों से झाग गिराता हुआ अपने नुकीले सींग घुमाने लगता। सारा गांव उससे भय खाता था।
उसी गांव में धनीराम नाम का एक पंडित रहा करता था। कहने को तो उसका नाम धनीराम था, पर था वह एकदम कंगाल। इसकी वजह थी उसका आलस । वह भोला से ईर्ष्या करता था। भोला की खुशी उससे देखी नहीं जाती थी। वह जब भी भोला को खेतों में जुटा देखता, जलकर कोयला हो जाता।
धनीराम एक दिन भोला के घर के सामने से गुजर रहा था। भोला उस समय घर पर नहीं था। दोनों बैल नांद में मुँह डाले मस्ती से चारा खा रहे थे। अचानक धनीराम के मन में एक कुविचार आया।
उसने सोचा, क्यों न भला भोला के मरखने बैल की रस्सी खोल दूं। जब वह गांव में तहस-नहस मचाएगा तो भोला की हालत खराब हो जाएगी। लोगों की बातें भी सुननी पड़ेगी और नुकसान की भरपाई करनी होगी, सो अलग।
यह सोचकर वह दबे पाँव खूंटे के पास पहुँचा और बैल की रस्सी खोलकर भाग खड़ा हुआ।
भोला उस समय खेतों की निराई कर रहा था। एक चरवाहे ने जाकर उसे बताया कि उसका मरखना बैल रस्सी तोड़कर भाग खड़ा हुआ है। भोला घबरा गया। वह जिस हालत में था, भाग खड़ा हुआ।
थोड़ी दूर चलते ही उसे भीड़ दिखाई दी। भोला को पक्का यकीन हो गया कि बैल ने किसी को घायल कर दिया है और उसी को घेरे लोग खड़े हैं। लेकिन पास जाकर पता चला वहां मदारी तमाशा दिखा रहा है। वह वहाँ से निकल पड़ा। रास्ते में कई लोगों से पूछता गया पर बैल का कहीं पता नहीं चला। तभी एक लड़के ने बताया कि उसने गाँव के बाहर घूरे पर एक बैल को सींग चलाते हुए देखा था। भोला फौरन उधर भागा। पास जाकर देखा तो पता चला कि वह किसी और का बैल था।
भोला ने सब कहीं छान मारा लेकिन बैल उसे कहीं नहीं मिला। वह थक हार कर निराश हो घर लौटने को हुआ कि धनीराम के घर की ओर से चीखें आती सुनाई दीं। भोला सारी थकान भूल कर उस ओर भागा। जाकर देखा तो उसकी हँसी छूट गई। धनीराम छप्पर के ऊपर चढ़ा था और बैल छप्पर की थूनी में लगातार टक्करें मार रहा था।
भोला को देखते ही धनीराम चिल्लाया, “अरे भोला… मुझे बचाओ… तुम्हारा बैल मुझे मार डालेगा।”
भोला को बड़ा आश्चर्य हुआ। उसने पूछा, “लेकिन पंडित जी, यह आपके पीछे कैसे पड़ गया?”
धनीराम कलपते हुए बोला- “भोला भइया, मुझे नहीं पता था कि जानवरों को अच्छे-बुरे की पहचान आदमियों से ज्यादा होती है। मैंने तुम्हारे बैल को इसलिए खोल दिया था कि तुम परेशान हो जाओ। पर इसे खोलते ही यह मेरे पीछे पड़ गया। तबसे पूरे तीन गाँवों का चक्कर मुझसे लगवा चुका है। अब तो मेरे प्राण ही निकाल निकल रहे हैं।”
भोला ने किसी तरह से पुचकार कर बैल को वश में किया और उसे लेकर घर की ओर चल पड़ा। धनीराम हांफते-हांफते नीचे उतरा। उसे समझ में आ गया था कि जो दूसरों के लिए गड्ढा खोदता है, पहले वह स्वयं ही उसमें गिरता है।