एक यात्री चलते-चलते इतना थक गया कि उसमें पैर उठाने का साहस भी ना रहा। उसने पास में एक छोटा सा गांव देखा। यात्री किसी तरह से पैर घसीटते घसीटते उस गांव में जा पहुंचा। वहां उसने एक घोड़ा किराए पर लिया और उस पर बैठकर अपनी मंजिल की ओर निकल पड़ा। उसके साथ साथ घोड़े का मालिक भी आ रहा था।
गर्मी का समय था। ऐसा लग रहा था जैसे आसमान से आग के गोले की बारिश हो रही हो। यात्री इतना थक चुका था कि वह घोड़े पर चढ़कर भी आगे ना बढ़ सका। उसने प्रकट कहीं पास में ही थोड़ी देर ठहर कर सुस्ता लिया जाए। परंतु दूर दूर तक कहीं ऐसा स्थान नजर नहीं आया, जिसकी छाया में बैठकर वह थोड़ी देर आराम कर लेता। आखिर उसने बीच रास्ते में घोड़ा खड़ा कर दिया और उसकी ही छाया में बैठकर सुस्ताने का विचार किया।
यात्री घोड़े की छाया में बैठ तो गया, परंतु घोड़े के मालिक को यात्री का इस तरीके से आराम करना पसंद नहीं आया। वह बिगड़ उठा और बोला हटो यहां से, मैंने तुम्हें घोड़ा किराए पर दिया है, उसकी छाया नहीं दी है, इसलिए घोड़े की छांव में मैं बैठूंगा। इसकी छाया में तुम्हारा कोई अधिकार नहीं है।
यात्री चकित होकर बोला- तुम पागल तो नहीं हो गए हो, एक तो तुमने मनमाना किराया लिया है ऊपर से ऐसी बातें कर रहे हो। जब मैंने पूरा घोड़ा किराए पर ले लिया है, तो उसकी परछाई पर भी मेरा अधिकार होगा। जब तक मैं घोड़ा अपने पास रख लूंगा तब तक उसकी छांव का भी उपयोग मैं ही करूंगा।
तुम्हारी खैरियत इसी में है कि बस चुपचाप चलते नजर आओ, बिना मतलब के उटपटांग नए नियम मत बनाओ। घोड़े का मालिक गरज कर बोला- कैसे बेवकूफ आदमी हो तुम? जरा सी बात भी नहीं समझी। तुमने किराया पर छाया ली ही नहीं है फिर वह तुम्हारी कैसे हुई? सीधे-सीधे ना उठोगे तो मैं धक्का मार कर तुमको उठा दूंगा।
इस प्रकार दोनों एक दूसरे को बुरा भला बताने लगे। सचमुच दोनों ही एक सांचे में ढले थे। इनका झगड़ा देखते ही आसपास के लोग भीड़ लगाकर इन्हें देखने लगे। अब यात्री और घोड़े के मालिक हाथापाई पर उतर आए थे। और एक दूसरे को लतियाने-धकियाने लगे, दोनों की लड़ाई देखकर घोड़ा भी भड़का, और वहां से रफूचक्कर हो गया।
अब तो यात्री बहुत खुश हुआ, और ताली बजाने लगा। इसके बात यात्री ने बोला- बैठ जाओ घोड़े की छांव में, अभागा कहीं का।
घोड़े का मालिक माथा पीटते पीटते, रोना-धोना चालू कर दिया और बोला- कोई मेरे घोड़े को खोज कर लाओ, हाय मैंने छांव के लालच में अपना घोड़ा खो दिया। घोड़े से भी हाथ धो बैठा, और पैसे से भी हाथ धो बैठा। यह दंड मुझे लालच की वजह से मिला है। वहां मौजूद लोगों को अपना दुखड़ा बताते हुए उन्हें शब्द ज्ञान देने लगा- कि कभी लालच मत करना, नहीं तो मेरे जैसा हाल होगा