एक था लकड़हारा। उसका नाम था ननकू। वह जंगल के किनारे एक झोपड़ी बनाकर रहता था। एक दिन ननकू नारियल के पेड़ के नीचे अपनी कुल्हाड़ी तेज कर रहा था। पास में ही एक घोंघा बैठा था। घोंघे को कुल्हाड़ी की आवाज बहुत खराब लगी। उसने ननकू के पैर में काट लिया और एक पत्ते के नीचे छिप गया।
ननकू को गुस्सा आया। उसने अपनी कुल्हाड़ी उठाई और नारियल के पेड़ पर दे मारी। कुल्हाड़ी के वार से नारियल के पेड़ को बहुत चोट लगी। उसने गुस्से में एक बड़ा सा नारियल पेड़ के नीचे टपका दिया।
पेड़ के नीचे एक मुर्गा दाना चुग रहा था। नारियल मुर्गे की पीठ पर गिरा। वह जोर से चिल्लाते हुए एक और भागा। सामने ही चीटियों का घर था। गुस्से से पगलाए मुर्गे ने चींटियों पर हमला बोल दिया।
मुर्गे के हमले से चींटियों में खलबली मच गई। वे इधर-उधर भागने लगीं। तभी किस्मत का मारा एक काला नाग वहां पर आ टपका। चींटियां उससे लिपट गई और
अपना गुस्सा उतारने लगीं। चींटियों की सेना के आगे नाग की हिम्मत जवाब दे गई। वह अपनी जान छुड़ाकर वहां से भागा। सामने ही उसे एक सूअर नजर आ गया। उसने बहुत जोर से सूअर के पैर में डस लिया।
सांप के काटने से सुबह एकदम से पगला गया। उसने गुस्से के कारण पास में लगी हुई एक झाड़ी उखाड़ डाली। उस झाड़ी में एक चमगादड़ उल्टा लटका हुआ था।
झाड़ी उखड़ जाने से चमगादर एकदम हड़बड़ा गया और एक हाथी के कान में जा घुसा। हाथी एक पेड़ के नीचे बैठा आराम कर रहा था। चमगादड़ के चिपक जाने से वह घबरा गया और बेचैनी से इधर-उधर भागने लगा।
हाथी के इधर-उधर भागने से एक चट्टान उखड़ गई। लुढ़कते-लुढ़कते चट्टान एक झोपड़ी पर जा गिरी। उस झोपड़ी में एक गरीब बुढ़िया रहती थी। चट्टान के गिरने से बुढ़िया की झोपड़ी तहस-नहस हो गई।
अपनी झोपड़ी की दुर्दशा देखकर बुढ़िया का पारा सातवें आसमान पर जा पहुंचा। वह चिल्लाकर बोली, “पत्थर रे पत्थर, तूने मेरी झोपड़ी तोड़ दी। तुझे इसका हर्जाना देना
होगा।”
बुढ़िया की बात सुनकर चट्टान घबरा गई। भला वह हरजाना कहां से लाती? वह बुढ़िया से गिड़गिड़ा कर बोली, “अम्मा इसमें सारी गलती उस पागल हाथी की है, जिसने मुझे ठोकर मारी। न वह मुझे ठोकर मारता, न मैं यहां आकर गिरती और न ही तुम्हारी झोपड़ी टूटती। इसलिए तुम्हें यह शिकायत हाथी से करनी चाहिए।”
बुढ़िया को चट्टान की बात माननी पड़ी। वह गुस्से से भरी हुई हाथी के पास पहुंची, “हाथी रे हाथी, तुम्हारी वजह से मेरे घर की छत टूट गई। तुम्हें इसका हर्जाना देना होगा।”
बुढ़िया की बात सुनकर हाथी एकदम से हड़बड़ा गया। आखिर गलती तो उसी की थी। लेकिन वह हरजाना कहां से लाता? वह अपनी गलती चमगादड़ पर मढ़ता हुआ बोला, “नहीं-नहीं बुढ़िया मां, इसमें गलती तो चमगादड़ की है। वह दुष्ट मेरे कान में घुस गया था। इसी वजह से मैं एकदम से हड़बड़ा गया और चट्टान लुढ़क गई। इसलिए तुम्हें अपना हरजाना भी चमगादड़ से वसूलना चाहिए।”
अपने पैर पटकती हुई बढ़िया चमगादड़ के पास पहुंची। वह आंख बंद करके सोने की कोशिश कर रहा था।
बुढ़िया की आवाज सुनकर वह एकदम से बिगड़ गया, “वाह-वाह, मैं क्यों हर्जाना देने लगा? तूने मुझे पागल समझा है क्या? अगर तुम हरजाना चाहती हो, तो उस सूअर को खोजो। उसी की सारी गलती है इसमें।
कहते-कहते चमगादड़ ने आंखें बंद कर लीं। बुढ़िया का मन हुआ कि वह चमगादड़ के बच्चे को उठाकर पटक दे। पर उसने अपना गुस्सा पी लिया और सूअर की खोज में निकली।
थोड़ी दूरी पर सूअर जमीन पर लट रहा था। जैसे ही बुढ़िया ने उससे हरजाने की बात की, वह भड़क गया और डपटकर बोला, “मैं तो यहां दर्द के मारे मरा जा रहा हूं और तुम्हें अपनी झोपड़ी की पड़ी है। अगर तुममें दम है, तो उस नाग के पास जाओ और अपना हरजाना मांगो।”
सूअर की बात सुनकर बुढ़िया खीझ उठी। यह तो वही बात हुई कि उल्टा चोर कोतवाल को डांटे। लेकिन बुढ़िया कर भी क्या सकती थी? उसने चुप रहना ही बेहतर समझा और नाग को खोजने निकल पड़ी। नाग अपने बिल के पास बैठा कराह रहा था। बुढ़िया की बात सुनकर वह बोला, “मैं तो बड़े मजे से भाग जा रहा था।
कमबख्त चीटियों ने मुझे घेर लिया और काटने लगीं। तुम ही बताओ मैंने उन चींटियों का क्या बिगाड़ा था।”
कहते हुए नाग सिसकने लगा। नाग के आंसू देखकर बुढ़िया चुप हो गई। वह आगे बढ़ी और चीटियों के पास जा पहुंची।
बुढ़िया की बात सुनकर चींटियों की रानी बोली, “हमारा तो खुद ही घर बिगड़ गया है। बताओ हम किसके पास जाएं हर्जाना मांगने? तुम्हें हरजाना चाहिए है तो उस शैतान मुर्गे को पकड़ो। उसी ने हमारे घर भी बिगाड़ा है।”
अब तक बढ़िया थककर चूर हो गई थी। फिर भी वह किसी तरह आगे बढ़ी। चलते-चलते वह मुर्गे के पास पहुंची। मुर्गा बुढ़िया की बात पर बोला, “देखती नहीं, मैं दर्द से बिलबिला रहा हूं। नारियल ने मेरी कमर तोड़ दी। बताओ मैंने उसका क्या बिगाड़ा था?”
मुर्गे की बात सुनकर बढ़िया निराश हो गई। लेकिन उसने हिम्मत नहीं हारी और नारियल के पेड़ का रास्ता पकड़ा। नारियल का पेड़ उस समय मस्ती में झूम रहा था। बढ़िया को देखते ही उसकी मस्ती हवा हो गई। वह अपनी गलती लकड़हारे पर थोंपता हुआ बोला, “तुम्ही बताओ बुढ़िया माई, ननकू ने मुझ पर कुल्हाड़ी क्यों चलाई?
इसमें तो सरासर उसकी ही गलती है।”
नारियल की बात सुनकर बुढ़िया ने अपना सिर पीट लिया। पर मरती क्या ना करती थक हारकर उस अपनी किस्मत को कोसती हुई वह ननकू लकड़हारे के पास पहुंची।
ननकू अपने घर के पास बैठा हुआ पैर में दवाई लगा रहा था वह बुढ़िया को डपट कर बोला, “देखती नहीं, मेरे पैर में घूंघट ने काट लिया है? बड़ी आई हर्जाना मांगने वाली। जा उस घोंघे को खोज और उसी से अपना हरजाना वसूल।”
ननकू की बात सुनकर बुढ़िया की सिट्टी-पिट्टी गुम हो गई। थकान के मारे उसका बुरा हाल था। फिर भी वह किसी तरह घिसटते हुए घोंघे के पास पहुंची। घोंघा उस समय तालाब के किनारे बैठा हुआ था। बुढ़िया ने उसे खूब खरी-खोटी सुनाई और अपनी झोपड़ी का हरजाना मांगा। घोंघा सिर झुकाये उसकी बातें सुनता रहा। वह अपनी गलती किसी और पर नहीं थोंपना चाहता था। उसे अपने किए पर बहुत पछतावा हुआ। वह पानी में कूद गया और शर्म के कारण अपना सिर एक खोल में छुपा लिया। बुढ़िया काफी देर तक बड़बड़ाती रही और
फिर निराश होकर अपने घर लौट आई गई।
उस दिन के बाद घोंघा कभी खोल से बाहर नहीं निकला। अब तक उसे अपनी गलती का एहसास है। इसलिए वह किसी को अपना मुंह नहीं दिखाता। कम से कम वह उन सब से तो अच्छा ही है, जो अपना दोष दूसरों पर मढ़ते रहते हैं।
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