यह hindi kahani काफी पुरानी हैं, लेकिन इस कहानी को हमने अपने प्लेटफॉर्म मे इस लिए पोस्ट की हैं की इस हिन्दी कहानी को पढ़ कर लोगो को यह एहसास हो की अगर वो चुगली करते हैं तो वो समझे की यह एक गलत कार्य हैं, अक्सर देखा जाता की दफ्तरी कार्यो वाले नौकरी मे अक्सर लोग एक दूसरे के पैर खींचते हैं। यानि उनकी चुगली करते रहते हैं, या फिर साथ के कर्मचारी से डरे होते हैं की वह मेरी चुगली कर रहा हैं, यह सोच कर वह भी चुगली करना चालू कर देता हैं। इस hindi story को जरूर पड़े। चुगली करने पर मिली एक महिला को सजा, जबकि पाप कर्म से उसका कोई लेनदेना नहीं था।
कथा शुरू होती है राजा के महल से जहाँ बड़े-बड़े विद्धवान ब्राह्मणों के भोज की तैयारी चल रही थी। राजा भी स्वयं को बड़भागी समझ प्रसन्न हो रहा था कि उसके महल में आज उच्च कोटि के विद्धवान और ब्राह्मण एक साथ भोज के लिए पधार रहे हैं। उधर रसोइये खुले आकाश में ब्राह्मणों के भोज के लिए तरह-तरह के पकवान और मिष्ठान बना रहे थे। जिनकी खूशबू पूरे महल में फैल रही थी।
अचानक एक चील तेज रफ्तार से आसमान में उड़ती जा रही थी। उसके पंजों में एक जहरीला साँप दबा हुआ था जो बार-बार चील के नुकीले पंजो से बाहर निकलने का प्रयास करते हुए फुंकार रहा था। ऐसा कई बार करते हुए साँप के मुँह से जहर की कुछ बूंदे ठीक नीचे बन रहे खाने में जा गिरती है।
खाना बना रहे किसी भी रसोइए को साँप के जहर का खाने में गिर जाने का कोई आभास तक नहीं होता। कुछ समय बाद वही खाना सभी ब्राह्मणों को परोस दिया जाता है। जहर इतना तेज था कि खाना खाते ही सभी ब्राह्मणों की मृत्यु हो गयी। राजा को जब दुःखद घटना का पता चला तो इसे ब्रह्म हत्या का पाप जान राजा दुखी हो पड़ा।
अब निर्णय धर्मराज यमराज को लेना था। आखिर इतने सारे ब्राह्मणों की हत्या का दोष किसके सिर मंढा जाएं। कौन है असली दोषी? क्या उस राजा के सिर जिसने सभी ब्राह्मणों को भोज पर निमंत्रित किया? या फिर उन रसोइयों के जो ब्राह्मणों के लिए खाना बना रहे थे और जिन्हें ज्ञात ही नहीं था कि भोजन के पात्र में साँप का जहर गिर चुका है?
यमराज ने विचार किया तो हत्या का दोष राजा और रसोइयों में से किसी के भी हिस्से में नहीं जाता।
अब बचे साँप और वो चील, जो साँप को अपना भोजन बनाने के लिए इतनी मेहनत कर रही थी। यमराज की दृष्टि में वह भी दोषी नहीं
अब बचा वह जहरीला साँप जो चील के पंजों से बचने के लिए बार-बार फुंकार रहा था, उसी की फुंकार के साथ जहर की कुछ बूंदे साँप के मुँह से निकलकर खाने में जा गिरी और भोज पर आए ब्राह्मणों की मौत हो गयी तो क्या यमराज की दृष्टि में वह सांप ही असली दोषी है? नहीं, यमराज उसे भी दोषी नहीं मानते चूंकि सांप का स्वभाव ही फुंकार करना है और फिर अपने प्राणों की रक्षा करना कोई पाप नहीं। यमराज ने इस विषय को कुछ समय के लिए वहीं रोक दिया।
इधर धरती मे थोड़े दिन बीतने लगे और फिर एक दिन कुछ ब्राह्मण देव राजा से भेंट के लिए एक महिला से महल का मार्ग पूछने लगे।
महिला ने महल का मार्ग तो बता दिया लेकिन कहा कि यह राजा ठीक नहीं अभी कुछ दिन पहले खाने में जहर देकर आप ही के जैसे निर्दोष ब्राह्मणों को मृत्युदंड दे दिया।
महिला के मुँह से ये बात निकलते ही यमराज ने निश्चय कर लिया कि इतने सारे निर्दोष ब्राह्मणों की हत्या का दोष इस महिला के भाग्य में जोड़ दिया जाएं।
महिला के भाग्य में ही क्यों? इस पूरे वृतांत से महिला का तो कोई लेना देना तक नहीं था। फिर महिला को ब्रह्म हत्या का दोष क्यों लगा? यह प्रश्न यमदूतों ने यमराज से किया।
यमराज ने बताया कि जब कोई जान बूझकर पापकर्म करता तो उसे स्वार्थ सिद्ध होने पर आनंद मिलता है लेकिन निर्दोष ब्राह्मणों की हत्या से न तो राजा, रसोइयों और न ही चील व साँप ने स्वार्थ सिद्ध होने का आनंद लिया। ऐसे में इस अनजाने पाप का पूरा दोष उस महिला को जाता है जिसने जानबूझकर मन में ईर्ष्या का भाव रखते हुए इस पापकर्म की निंदा की। इस तरह की घटना की बुराई करने में उस महिला को जरूर आंनद मिला।