विवेकानंद स्वामी ने जब तक अध्यात्म से नहीं जुड़े थे तो वो नरेंद्र के नाम से जाने जाते थे। नरेंद्र संस्कृत सीखने के लिए पंडित शिवराम जी के यहाँ जाते थे। पंडित शिवराम बहुत ही गरीब थे, बच्चो को संस्कृत सीखा कर उन्हे जो भी मिलता उसी से उनका गुजर-बसर चलता था।
गरीबी के कारण उनका पूरा परिवार भूख से व्याकुल रहता था, परंतु इस तरह की गरीबी से बिना प्रभावित हुए पंडित शिवराम अपने शिष्यो को निरंतर संस्कृत सिखाया करते। नरेंद्र पंडित शिवराम जी के यहां बड़ी उत्साह के साथ अध्यापन करने के लिए जाया करते थे।
एक दिन एक डाकिया शिवराम जी के यहाँ एक चिट्ठी और मनी ऑर्डर लेकर आया। उस मनीआर्डर मे ₹10 रूपय थे, डाकिया ने वह 10 रूपय शिवराम जी को दिया। पंडित जी ने मनीओर्डर के साथ आए चिट्ठी को पढ़ना चालू किया तो उनकी आंखों से आंसू निकल पड़े। यह देख कर नरेंद्र ने पंडित शिवराम जी से पूछा – “गुरुजी इस चिट्ठी मे ऐसा क्या लिखा हुआ जिसे पढ़ कर आप इतने भावुक हो रहे हैं?”
पंडित शिवराम नरेंद्र से बोले – “नरेंद्र ये आँसू भगवान की मुझ पर कृपा के प्रति कृतज्ञता के आंसू हैं।” यह कहकर उन्होंने वह चिट्ठी नरेंद्र को पढ़ने के लिए दे दिया।
वह चिट्ठी काशी से आई थी और एक शिव भक्त के द्वारा लिखी गई थी। शिव भक्त ने लिखा था कि – “कल मुझे स्वप्न में भगवान शिव दिखे और मुझसे बोले कि मेरा एक भक्त शिवराम नाम का एक पंडित हैं जो लोगो को संस्कृत पढाता है। वह पिछले तीन दिन से भूखा है तो तुझे उसकी मदद करनी हैं। इसलिए मैं शिव भगवान की आज्ञा से यह 10 रुपए आपको भेज रहा हूं। आप इन पैसो को स्वीकार करें। और भगवान भोले की आज्ञा पूर्ति मे मेरी मदद करे।”
नरेंद्र चिट्ठी को पढ़ कर पंडित शिवराम से बोले की – “पंडित जी आप धन्य हैं! जो तीन दिनों से भूखे रहकर भी हमें पढ़ाते रहे। आपने हमसे क्यों नहीं कहा।”
पंडित शिवराम बोले जब हमारे पिता परमात्मा हमारी चिंता कर रहे हैं तो हम उनके पुत्रों से क्यों याचना करें, नरेंद्र उनकी श्रद्धा से अभिभूत हो गए और भगवान के प्रति उन्होंने भी अपनी कृतज्ञता व्यक्त की।
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