कहानी न- 01
भारत के गुलामी के दिनों की बात है, जब हमारा देश गुलाम था और अंग्रेज हमारे इतिहास में अपनी झूठी और कपटी जानकारियों को लगातार शामिल कर रहे थे। विनायक नाम के एक व्यक्ति जोकि स्वभाव से बहुत ही सज्जन थे, शहर के एक पाठशाला में निरीक्षण करने पहुंचे।
वहां के शिक्षक बच्चों को अंग्रेजी में उटपटांग बातें और झूठा इतिहास पढ़ा रहे थे, विनायक जी ने पूछा -“क्या बच्चे हिंदी नहीं पढ़ते?”
शिक्षक ने बोला – “सर हमें हिंदी नहीं आती, इसलिए हम बच्चों को हिंदी कैसे पढ़ाएं?”
यह सुनकर विनायक जी ने बोला – “हिंदी नहीं आती तो हिंदी सीख लो।”
शिक्षक बोला – “इस उम्र में अब कैसे हम हिंदी सीखेंगे?”
विनायक जी ने शिक्षक को समझाया – “आयु कितनी भी क्यों ना हो, अगर इंसान को कुछ नया सीखना है तो वह उसे सीख सकता है और यदि इंसान कुछ नया ना सीख पा रहा हो तो उस व्यक्ति का जीवन व्यर्थ हो जाता है। रामायण से हम सीख सकते हैं, की कैसे विभीषण का एक तीरंदाज था, वह बूढ़ा हो चुका था, फिर भी उसने तलवार चलाना सीखा था।”
विनायक जी की बातों को सुनकर शिक्षक ने हिंदी सीखी और अंग्रेजी की झूठी बातों को बताना बंद कर दिया और अपने विद्यार्थियों को भी हिंदी भाषा सिखाने लगा।
यह विनायक और कोई नहीं बल्कि संत विनोबा भावे जी थे। जिन्होंने अपने जीवन में 16 भाषाओं का ज्ञान प्राप्त किया था।
कहानी न- 2
एक युवक बहुत परेशान स्थिति में एक संत के पास गया और उनको बताया कि उसने बहुत प्रयत्न करने पर भी स्थिरता से ध्यान नहीं लगा पाता है। संत ने उनकी बातों को सुनकर उस व्यक्ति को अपने सामने बैठा कर ध्यान करने को कहा।
युवक आंखें बंद करके वहीं पर बैठ गया। इस बीच संत ने वहां पर झाड़ू लगा रही एक स्त्री को इशारा किया, तो उस स्त्री ने अपनी झाड़ू, उस युवक से छुआ दिया।
यह देखकर वह युवक गुस्से में आग बबूला हो उठा और स्त्री से लड़ने को उतारू हो गया। तब संत ने उस व्यक्ति से बोला – “बेटा ध्यान करने के लिए अंदर के गुस्से को शांत करना ज्यादा जरूरी होता है। यदि छोटी सी बात से तुम इतना ज्यादा क्रोधित हो जाओगे तो मन को कैसे स्थिर और शांति रख पाओगे।”
संत की बातों को सुनकर युवक को अपनी गलती का पता चल गया और वह अपने दोषों के छुटकारा पाने में जुट गया।
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