रामू के नाम का किसान दोगलापुर नाम के गांव का रहने वाला था। वह अव्वल दर्जे का चालाक आदमी था, चोरी करना और दूसरों को ठगना उसकी खास आदत थी. उसके पास बैल की एक जोड़ी थी, उसमें एक युवा बैल था, तो दूसरा काफी वृद्ध हो चुका था। एक दिन वृद्ध हो चुका बैल मर गया, रामू ने सोचा की अब अकेला बैल उसके लिए फालतू है। दूसरा बैल खरीद कर फिर से दो बैलों की जोड़ी बना लेनी चाहिए या फिर इस बचे हुए बैल को किसी और को बेच देना चाहिए।
बेईमान रामू सोचने लगा कि यदि वह बैल खरीदेगा तो रुपए खर्च होंगे। वह रुपए खर्च नहीं करना चाहता था, इसलिए किसी को उल्लू बना कर या चुराकर नया बैल लाना चाहता था और यह बात उसके मन में ठन गई।
अगले दिन सवेरे सवेरे ही वह अपना बैल खोलकर घर से निकल पड़ा, उसने मन ही मन यह बात अच्छी तरह सोच ली थी कि वह मुफ्त में ही दूसरा बैल लेकर घर लौटेगा, नहीं तो इस बेल को भी ऊंची कीमत पर बेच आएगा। दिन भर चलने के बाद रामू शाम को आठ-दस कोस दूर भजनपुर पहुंच गया।
गांव के बाहर खेतों में हरी भरी और घनी फसल देखकर उसने सोचा जरूर इस गांव के किसान खूब धनी होंगे, रामू ने गांव के बाहर एक किसान का घर देखा। घर की एक तरफ एक सुंदर सा बैल बंधा हुआ था। एक ही नजर में रामू को वह बैल पसंद आ गया।
“यदि इस बेल को मैं हथिया लूं तो मेरी बैलो की जोड़ी खूब जोरदार बन जाएगी- रामू ने मन ही मन सोच लिया।
अगले ही क्षण वह बैल के साथ घर में घुस गया, सामने ही घर का मालिक परसोती बैठा था। रामू ने कहा -“बड़ी दूर से चलकर आ रहा हूं भैया! मैं और मेरा बैल दोनों थक गए हैं, रात भर के लिए टिकने की जगह मिल जाएगी क्या?”
“क्यों नहीं खूब आराम से रहो, अभी रोटियां बन जाती है, तब तक अपने बैल को खुटे से बांध दो पास में ही घास और भूसा पड़ा हुआ है, उसे लेकर अपने बैल को खाने के लिए डाल दो” – ऐसा परसोती ने कहा।
उसकी बात सुनकर रामू ने सोचा – “यह आदमी तो बहुत ही भोला और दयालु लगता है, ऐसे आदमी को ठग लेना तो बहुत आसान बात है”
जब वह दोनों भोजन कर चुके तो परसोती ने एक कमरे में रामू का बिस्तर लगा दिया और खुद दूसरे कमरे में सोने चला गया। रामू जिस कमरे में सो रहा था। उस कमरे में एक बड़ा सा संदूक रखा हुआ था। रामू को लगा कि शायद इस संदूक में परसोती का धन रखा हुआ होगा और यह सोच कर उसे नींद नहीं आ रही थी।
आधी रात को रामू उठा और संदूक खोलने के लिए उसका ताला तोड़ने लगा। रामू के संदूक का ताला नहीं टूटा, अभी वह बैठा बैठा कोई और उपाय सोच रहा था, तभी उसने परसोती की आवाज सुनी।
परसोती अपनी पत्नी से कह रहा था – “इतनी रात हो गई है और तुम अभी तक जाग रही हो, मैं तो एक नींद सो भी चुका हूं।”
तब परसोती की पत्नी ने कहा – “नींद तो तब आए, जब मन में चिंता ना हो। कितनी बार कह चुकी हूं कि जल्दी ही दूसरा बैल खरीद लो पर आप मेरी मानते ही नहीं हो”
“सोच रहा हूं की कल ही किसी से रुपए उधार लेकर, परसों तक दूसरा बैल खरीद लाऊं”- ऐसा परसोती ने जवाब दिया।
रामू उन दोनों की बात कान लगाकर सुन रहा था, उसकी बात पर पत्नी नाराज होकर बोली – “मेरे बार-बार मना करने पर भी पहले तो तुम अपना बैल उधार में बेच दिया, अब नया बैल खरीदने के लिए दूसरे से उधार मांगोगे। मैं तो कहती हूं कि तुम्हें अब इस गांव में कोई एक भी रुपए उधार देने वाला नहीं है। आज तक जिस जिस से भी तुमने उधार लिया है कभी उसको वापस भी लौटाए नहीं हो। मेरी बात मानो और सुबह मेरे गहने बेचकर नया बैल खरीद लेना”
परसोती नाराज होकर बोला – “तुम भी बहुत खूब हो, उधार के पैसे तो जैसे तैसे चुका देंगे पर दोबारा गहने बनवाना मुश्किल होगा।”
पति-पत्नी में तर्क वितर्क होते रहे परसोती की पत्नी बार-बार कहे जा रही थी की – “उधार के रुपयों से लाए बैल को मैं इस घर में घुसने तक नहीं दूंगी, हां नए बैल के बदले गहने देने को तैयार हूं।”
परसोती बोला – “तो ठीक है तुम भी कान खोल कर सुन लो, मैं अपनी जिद्द का पक्का हूं। अब नया बैल भी तुम खरीदना अपने गहनों से, मैं इस उलझन में नहीं पड़ूँगा।
“हां हां मैं ले आऊंगी बैल, जब अपने गहने दूंगी तो कोई भी अपना बैल खुशी-खुशी इस घर में बांध जाएगा”- परसोती की पत्नी बोली
रामू अब तक दोनों की बातें सुनकर मन ही मन मुस्कुरा रहा था। वह सोचने लगता है, की – “दोनों पति पत्नी मूर्ख ही नहीं बल्कि महामूर्ख हैं। मुझे इनकी मूर्खता का फायदा जरूर उठाना चाहिए।”
सुबह मुंह फुलाए परसोती पत्नी से नाराज होकर कहीं चला गया। रामू ने अच्छा मौका देखा और परसोती की पत्नी से बात बनाकर बोला -“मुझे अपना बैल बेचना है, इस गांव में किसी को बैल की जरूरत हो तो मुझे बता दो, मेरे लिए यह बैल फालतू है।”
वह बोली -“बैल तो मैं ले लूंगी पर, मेरे पास रुपए नहीं है। चाहो तो मेरे गहने ले सकते हो।”
रामू हंसकर बोला -“कोई बात नहीं, मैं तैयार हूं”
उसी क्षण वह अंदर गई और गहनों की पोटली ले आई और रामू को देकर बोली -“देख लो इसमें मेरे गहने बंधे हैं, चाहो तो बैल का सौदा कर लो।”
पोटली के गहने देख रामू खुश हो गया, उसने सोचा इन गहनों से दो बैलों की जोड़ी खरीद लूंगा। उसी समय उसने पोटली संभाल ली और बैल छोड़कर अपने गांव की राह चल पड़ा।
शाम तक वह अपने गांव पहुंचा, दूसरे दिन गांव के साहूकार के पास गहने बेचने जा पहुंचा। गहनों को देख -परख कर साहूकार बोला – “अरे भाई, इन गहनों की कीमत तो कुछ भी नहीं है। यह तो नकली गहने हैं। सोने चांदी के नहीं है।”
रामू ठगा सा खड़ा रह गया, परसोती और उसकी पत्नी ने उससे बैल ठग लिया था। उसने अब जाना कि वह दोनों मूर्ख नहीं बल्कि उससे भी कहीं ज्यादा चालाक थे। वह पछता कर रह गया और उसे समझ में आ गया कि एक दिन शेर को सवा शेर जरूर मिलता है।