यह घटना 1999 की है, जब हमारे दूर के रिश्तेदार पहली बार हमारे गांव जगनपुरा में रहने के लिए आए हुये थे। यह दूर के रिश्तेदार दिल्ली में रहते थे, और शायद गांव का माहौल उनके लिए थोड़ा अलग था। गाँव का माहौल इतना शांत था कि वे वहां उकताने लगे थे। गाँव में ही रहने वाले उनके रिश्तेदार अपने कामों में व्यस्त रहते थे, और उनकी पत्नी अपने छोटे बच्चों में उलझी रहती थीं। ऐसे में वे अधिकतर समय हमारे घर आ जाते थे और घंटों तक गपशप करते रहते थे। वह इतने बड़े गप्पी थे कि उनसे बातें खत्म होने का नाम ही नहीं लेती थीं।
शाम के समय वे फिर हमारे घर आ गए और बातें करते-करते विषय भूत-प्रेत पर आ गया। इस विषय पर आते ही उन्होंने अपने बहादुरी के किस्से सुनाने शुरू कर दिए। कहने लगे कि फलानी जगह पर लोग भूत के डर से नहीं जाते, लेकिन मैं वहां पूरी रात रहा। कहीं और भी भूत का नाम सुनकर लोग कांपते हैं, लेकिन मैंने वहां डटकर रात बिताई। उनकी शौर्यगाथाएं सुनकर हम सभी उनके साहस के आगे नतमस्तक हो रहे थे। इस बीच, मेरी मां ने कुछ बार कहा भी कि रात के समय इस तरह की बातें नहीं करनी चाहिए, लेकिन वे माने नहीं। उनका कहना था, “चाचीजी, भूत-प्रेत जैसी कोई चीज नहीं होती, यह सिर्फ मन का वहम है।”
उस दिन बातें करते-करते काफी देर हो गई, और कब रात के 11 बज गए, पता ही नहीं चला। गांव में उस समय तक सन्नाटा हो चुका था, और उनके घर से बच्चे बार बार फोन लगा रहे थे कि “पापा, घर आइए!”, हमारे घर से उनके घर जाने का मुख्य रास्ता थोड़ा घुमावदार था, लेकिन खेतों के बीच से होकर एक शॉर्टकट रास्ता था, जिससे हम लोग अक्सर जाया करते थे। उन्होंने भी उसी शॉर्टकट से जाने का फैसला किया। हमने पीछे के दरवाजे से उन्हें विदा किया और दरवाजा बंद करके अपने-अपने कामों में लग गए।
थोड़ी देर बाद, मेरी छोटी बहन को अचानक ख्याल आया कि छत पर जाकर देखे कि वे सही-सलामत अपने घर पहुंचे या नहीं। वह छत पर पहुंची, लेकिन घना अंधेरा होने के कारण उसे कुछ दिखाई नहीं दिया। वह छत से लौट ही रही थी कि उसे अचानक लगा कि कोई दौड़कर हमारे बगान में आया और नीम के पेड़ के नीचे छुप गया। उसने आवाज दी, “कौन है?”
आवाज आई, “मैं हूँ।”
“आप घर नहीं गए?” बहन ने पूछा।
वह बोले, “खेत में कुएं के पास कोई बैठा हुआ है।”
गांव में उस समय रात के अंधेरे में चोरों का आतंक रहता था, इसलिए हमें लगा कि शायद कोई चोर होगा। हम सब तुरंत पीछे के दरवाजे की ओर दौड़े और दरवाजा खोला। जब हमने उनसे पूछा तो उन्होंने कहा कि वो आदमी नहीं है, बल्कि कुछ भूत-प्रेत जैसा है, क्योंकि कुएं के पास कुछ लाल-लाल आंखें चमक रही थीं।
मेरी बहन की आवाज सुनकर हम सभी घर के बाहर जमा हो गए, और सामने का दृश्य एक अजीब-सी ठंडक से भर गया। दूर कुएं के पास घना अंधेरा फैला हुआ था, लेकिन उस अंधेरे में कुछ चमकती लाल-लाल आंखें स्पष्ट दिख रही थीं। हमारे रिश्तेदार, जो कुछ समय पहले तक भूत-प्रेत को मन का वहम कह रहे थे, अब कांपते हुए हमें बता रहे थे कि उन्होंने उस जगह किसी परछाई को हिलते-डुलते देखा था। उनके चेहरे की भयभीत मुद्रा देखकर हम भी डर से सिहर उठे।
मां ने जल्दी से हमें भीतर बुलाया और कहा, “तुरंत हनुमान चालीसा पढ़ो।” घर के वातावरण में अचानक एक अनजाना डर समा गया था, जैसे चारों ओर से कुछ अनदेखा हमें घूर रहा हो। हम सभी ने मिलकर हनुमान चालीसा का पाठ शुरू किया। जैसे-जैसे शब्द हवा में गूंजने लगे, ऐसा महसूस हुआ कि चारों ओर की हवा और भी ठंडी हो रही है, लेकिन हमारे भीतर का डर धीरे-धीरे कम हो रहा था।
पाठ खत्म होते ही अचानक एक तेज़ आवाज़ आई, जैसे किसी भारी चीज़ के गिरने की आवाज़ हो। हम सभी चौंक गए और एक-दूसरे की ओर देखा। मां ने हमें शांत रहने का इशारा किया और फिर धीरे से कहा, “शायद भूत भाग गया है।”
हमने बाहर झांककर देखा, कुएं के पास अब कोई हलचल नहीं थी। लाल आंखें भी गायब हो चुकी थीं। रिश्तेदार, जो अब तक कांप रहे थे, थरथराते हुए बोले, “अब मैं अकेला घर नहीं जाऊंगा।”
उस रात हमने उन्हें हमारे घर में ही रुकने के लिए कहा, और अगले दिन सूरज उगने तक वे पापा के बिस्तर से सटाकर ही अपना बिस्तर लगाए हुये थे और कई बार नींद में भी हनुमान चालीसा का पाठ कर रहे थे।
गांव के लोग अक्सर कहते थे कि उस कुएं के पास कई सालों से किसी अजीब साये का डेरा है, और उसे दूर भगाने के लिए सिर्फ हनुमान चालीसा का ही सहारा लिया जा सकता है। यह खेत बहुत साल पहले किसी बनवारी दास नाम के व्यक्ति का था, अंग्रेज़ो ने उसे कुएं के पास बहुत तड़पाया था और वही पर उसका दम निकाल गया था। तब से वह कुआं भूतियाँ माना जाने लगा, अक्सर गाँव के लोग वहाँ किसी छाया को देखने की बात करते आए हैं।
उस रात के बाद हमारे दूर के रिश्तेदार अब कोई भूत-प्रेत की बात नहीं करते हैं। और ना ही कहीं आने जाने के लिए शॉर्टकट रास्ते का इस्तेमाल करते हैं। उस दिन के बाद से हम लोग भी रात को खेत की उस तरफ जाना बंद कर दिये हैं। सोने से पहले माँ हनुमान चालीसा का पाठ करती हैं।