आज इस लेख के माध्यम से हम बंगाल के गवर्नर-जर्नल के बारे मे जानेंगे, प्रतियोगी परीक्षाओ मे इनके बारे मे पूछा जाता हैं। यह पर इंडिया जीके और भारत के आधुनिक इतिहास का हिस्सा हैं। तो आइये जानते हैं बंगाल के गवर्नर-जर्नल के बारे मे।
वारेन हेस्टिंग्स (1774-85 ई.)
1774 में वारेन हेस्टिंग बंगाल के गवर्नर-जनरल नियुक्त हुए थे। उन्हीं के शासनकाल में द्वैध शासन की समाप्ति की घोषणा की गई थी। इसके बाद सरकारी खजाने का स्थानांतरण मुर्शिदाबाद से कोलकाता में कर दिया गया था। वारेन हेस्टिंग के समय में ही कमिटी आफ रिवेन्यू की स्थापना की गई थी।
1773 में बनाए गए रेगुलेटिंग एक्ट के अनुसार 1774 में वारेन हेस्टिंग को बंगाल का पहला गवर्नर-जनरल बनाया गया था। वारेन हेस्टिंग ने अपने शासन में बंगाल के हर जिले में एक दीवानी तथा फौजदारी न्यायालय की स्थापना की थी।दीवानी और फ़ौजदारी न्यालय कलेक्टर के अधीन किया गया।
रेगुलेटिंग एक्ट के अनुसार कोलकाता में सुप्रीम कोर्ट का गठन किया गया था। वारेन हेस्टिंग अपने शासनकाल में मुसलमानों को शिक्षा देने के लिए बंगाल के कोलकाता में 1781 में मदरसे की स्थापना की थी।हेस्टिंग ने पहले से चले आ रहे सिक्को को बंद कर दिया और नए तथा निश्चित प्रकार के सिक्को को चालू किया, इसके लिए उसने कलकत्ता मे नया टकसाल खोला।
1791 के समय जोनाथन डंकन के द्वारा बनारस में एक संस्कृत महाविद्यालय की स्थापना भी की गई थी। वारेन हेस्टिंग के समय में ही 1784 में विलियम जोंस ने एशियाटिक सोसाइटी ऑफ़ बंगाल की स्थापना की थी। इसके अलावा वारेन हेस्टिंग के समय रोहिला युद्ध (1774), पहला अंग्रेज-मराठा युद्ध (1775 से 82 तक) तथा दूसरा अंग्रेज-मैसूर युद्ध (1780 से 84 में) लड़ा गया।
ब्रिटिश पार्लियामेंट में वारेन हेस्टिंग के खिलाफ महाभियोग चलाया गया, इस अभियोग मे करीब 7 वर्षों तक चर्चा होती रही, जिसके बाद वारेन हेस्टिंग को दोष मुक्त कर दिया गया। गीता का अंग्रेजी में अनुवाद करने वाले विलियम विलकिंग्सन को वारेन हेस्टिंग ने आश्रय दिया था। इसके साथ ही वारेन हेस्टिंग ने मुगल शासन को कमजोर करने का काम किया तथा मुगल सम्राट को मिलने वाली ₹26 लाख की वार्षिक पेंशन को बंद करवा दिया।
वारेन हेस्टिंग ने 1984 के पिट्स इंडिया एक्ट के विरोध मे इस्तीफा दे दिया और फरवरी 1785 मे वापस इंग्लैंड चला गया।
लॉर्ड लॉर्ड कार्नवालिस 1786-93
लॉर्ड कॉर्नवालिस बंगाल के दूसरे गवर्नर के रूप में 1786 में अपने कार्यभार को संभाला। लॉर्ड कार्नवालिस के समय में ही तीसरा आंग्ल-मैसूर युद्ध (1789 से 92 तक) हुआ था। इसी युद्ध में अंग्रेजों ने टीपू सुल्तान से श्रीरंगपट्टनम में संधि की थी। यह संधि 1792 में हुई थी। 1793 में कॉर्नवालिस ने एक नियम लागू किया, इस नियम का नाम स्थाई बंदोबस्त था। इसके तहत नए जमीदारो का उदय हुआ।
लॉर्ड कॉर्नवालिस ने जिले की फौजदारी अदालतों को जिसमें भारतीय न्यायाधीश हुआ करते थे। उन्हें समाप्त करके उनकी जगह पर चार भ्रमण करने वाली अदालतों का स्थापना की, इन अदालतों में तीन अदालत बंगाल के लिए और एक बिहार के लिए नियुक्त की गई थी। लॉर्ड कॉर्नवालिस के समय में ईस्ट इंडिया कंपनी के कर्मचारियों की व्यक्तिगत व्यापार पर प्रतिबंध लगा दिया गया था।
कॉर्नवालिस ने कार्नवालिस कोड का निर्माण किया इस कोड के द्वारा उसने प्रशाशन शक्तियों को बांट दिया तथा प्रशासन और न्याय की शक्ति को अलग कर दिया। इसके साथ ही लॉर्ड कॉर्नवालिस में रिवेन्यू बोर्ड की स्थापना की थी। लॉर्ड कॉर्नवालिस ने प्रशासनिक सेवा तथा नागरिक सेवा की स्थापना की तथा पुलिस अधिकारियों की नियुक्ति की, इसके साथ ही पुलिस थानों का निर्माण भी करवाया। लॉर्ड कॉर्नवालिस को प्रशासनिक सेवा और नागरिक सेवा का जनक भी कहा जाता है। कॉर्नवालिस के शासन काल मे जिले की सारी शक्तियाँ को कलेक्टर के हाथो मे केन्द्रित कर दी थी।
सर जॉन शोर (1793-98)
सर जॉन शोर 1793 में बंगाल के गवर्नर-जनरल के रूप में अपने पद को ग्रहण किया था। इनके समय में चार्टर अधिनियम को लागू किया गया था। चार्टर अधिनियम 1793 में लागू किया गया। इसके साथ ही सर जॉन शोर ने तटस्थ और अहस्तक्षेप की नीति को अपनाया था। इसके शासन मे ईस्ट इंडिया कंपनी की प्रतिष्ठा को काफी नुकसान पहुंचा, जिसकी वजह से 1798 मे उसे वापस बुला लिया गया था। सर जॉन शोर के शासन मे सबसे बड़ी घटना थी यूरोपीय सैनिको का विद्रोह था, सैनिको ने भत्तो को दुगुना करने की मांग को लेकर विद्रोह हुआ था, इसी की वजह से सर जॉन शोर को गवर्नर-जनरल के पद से हाथ धोना पड़ा।
लॉर्ड वेलेजली (1798 से 1805 तक)
लॉर्ड वेलेजली 1798 मे बंगाल के गवर्नर बना था। उसके कशासन काल मे चौथा आंग्ला-मैसूर युद्ध 1799 मे हुआ था। इस युद्ध मे दुराचारी टीपू सुल्तान की मृत्यु हो गई। इतिहास कर रवि वर्मा ने लिखा हैं की टीपू एक क्रूर राजा था, उसने एक सैन्य अभियान मे सैकड़ो मंदिरो को तोड़ा तथा बड़ी संख्या मे तलवार के ज़ोर मे हिन्दुओ को मुसलमान बनाया था।
लॉर्ड वेलेजली ने सहायक संधि का इस्तेमाल करके अपने ईस्ट इंडिया कंपनी के प्रभाव को बढ़ाया था। सहायक संधि मे हस्ताक्षर करने वाला देश का पहला राज्य हैदराबाद था। हैदराबाद ने सहायक संधि मे 1798 मे हस्ताक्षर किए थे। इसके बाद मैसूर, अवध, पेशवा, तंजौर, भोसले, सिंधिया और जयपुर राज्यो ने भी सहायक संधि मे हस्ताक्षर कर दिये। लार्ड वेलेजली के समय ही दूसरा अंग्रेज़-मराठा युद्ध (1803 से 05 तक) और बेसिन की संधि (1802 मे) हुई थी।
वेलेजली ने फोर्ट विलियम कालेज की स्थापना की थी, जिसमे सिविल सेवा मे चयनित लोगो को प्रशिक्षण दिया जाता था। वेलेजली खुद को बंगाल का शेर कहा करता था।
सहायक संधि के तहत देशी रियासतों को ईस्ट इंडिया कंपनी के शासन को स्वीकार्य करना पड़ता था। इसके अलावा उन्हे कंपनी की एक टुकड़ी अपने राज्य मे रखनी पड़ती थी। रियासत को चलाने के लिए अगर कोई कानून बनाए जाएंगे तो उसके लिए कंपनी से पर्मिशन लेनी पड़ती थी। कोई भी रियासत विदेशी शक्तियों से संबंध स्थापित नहीं करेगी।
सर जॉर्ज बार्लो (1805 से 07 तक)
जॉर्ज बार्लो 1805 मे बंगाल का गवर्नर जनरल बना था, उसके शासन के दौरान 1807 मे दासों के व्यापार पर रोक लगा दी गई थी। जॉर्ज बार्लो के शासन कल मे सेना ने विद्रोह किया था, इस विद्रोह को वेल्लोर विद्रोह के नाम से जाना जाता हैं। यह विद्रोह 1806 मे हुआ था। इस विद्रोह को जॉर्ज बार्लो ने बड़े ही सख्ती के साथ कुचल दिया था। लेकिन भारत और इंग्लैंड मे रहने वाले अंग्रेज़ उन्हे दुर्बल नीतिकार मान रहे थे, और इसी के चलते उन्हे गवर्नर जनरल का पद गवाना पड़ा।
लॉर्ड मिंटो (1807 से 13 तक)
लॉर्ड मिंटो 1807 मे बंगाल के गवर्नर जर्नल बने, मिंटो लगभग 6 वर्ष तक बंगाल के गवर्नर जनरल रहे हैं। लॉर्ड मिंटो ने अरविंद घोष को सबसे खतरनाक व्यक्ति के रूप मे घोषित किया था। लॉर्ड मिंटो के कार्यकाल मे ही अमृतसर की संधि हुई थी, यह संधि रणजीत सिंह और मेटकोफ के बीच हुई थी। इसके अलावा लोर मिंटो को सांप्रदायिक निर्वाचन करवाने का जनक माना जाता हैं।
लॉर्ड हेस्टिंग्स (1813 से 23 तक)
लॉर्ड हेस्टिंग्स ने 1813 मे गवर्नर जनरल का पद ग्रहण किया था, लॉर्ड हेस्टिंग्स ने प्रथम अंग्ला-नेपाल युद्ध के बाद नेपाल के साथ 1816 मे संगोली की संधि की थी। संगोली बिहार का एक गाँव हैं, इस संधि के तहत नेपाल को अपना एक तिहाई क्षेत्र अंग्रेज़ो के अधीन करना पड़ा। हेस्टिंग्स ने समाचार एजेंसी मे लगे प्रतिबंधों को हटा दिया। इसके साथ ही 1818 मे तीसरे अंग्ला-मराठा युद्ध मे मराठो को हारा कर मराठा क्षेत्रो के अंग्रेज़ो के अधीन लाने का श्रेय भी लोर हेस्टिंग्स को ही जाता हैं। हेस्टिंग्स ने पिंडरियों को भी पराजित कर उनके पतन को सुनिश्चित किया था। 1822 मे हेस्टिंग्स ने बंगाल मे काश्तकारी अधिनियम लागू किया था।
लॉर्ड एमहर्स्ट (1823 से 28 तक)
लॉर्ड एमहर्स्ट 1823 मे बंगाल के आखरी गवर्नर जनरल बने। इनके शासन काल मे पहला अंग्ला-बर्मा युद्ध हुआ था। यह युद्ध 1824 से 1826 तक चला। यह युद्ध याण्ड्बू की संधि के तहत समाप्त हुआ था। लॉर्ड एमहर्स्ट के कार्यकाल के दौरान 1824 मे बैरकपुर सैन्य विद्रोह हुआ था। एक आदेश के अनुसार भारतीय सैनिक को बर्मा जाना था, लेकिन सैनिको ने विद्रोह कर दिया। क्योंकि उन्हे बर्मा जा कर अपने धर्म को भ्रष्ट नहीं करना था। लॉर्ड एमहर्स्ट ने इस विद्रोह को बड़ी ही दरिंदगी से कुचला और विद्रोही सैनिको को गोली मार कर सजा दी गई।