हिन्दी कहानी : कंजूस का भोजन

हिन्दी कहानी : कंजूस का भोजन

कहानी का नाम हैं – कंजूस का भोजन

मध्य प्रदेश के रीवा जिले में एक कंजूस रहता था, उसके पास ढेर सारा पैसा था। लेकिन इतना सारा पैसा होने के बाद भी उसे संतोष न था। वह दिन-रात पैसे कमाने के नए-नए तरीको के बारे मे सोचता रहता था, जिससे उसके पास और भी पैसे हो जाए। उसका नाम सेठ मुनिराज था। उसकी दशा को उसके सभी दोस्त अच्छे से जानते थे, इसलिए मुनिराज के एक दोस्त ने मुनिराज को एक बार सलाह दी की “तुम काशी के करोड़ीराम के पास जाओ। उनके पास धन कमाने के बहुत सारे उपाय हैं। जब तुम उनके पास जाओगे तो वो तुम्हें अधिक धन कमाने की तरकीब अवश्य बताएँगे।”

कंजूस मुनिराज चल पड़ा काशी की ओर करोड़ीराम  से मिलने के लिए। करोड़ीराम ने उसका शानदार स्वागत किया। मुनिराज ने करोड़ीराम से कहा, “सेठजी, मैं आप से कुछ सलाह लेने आया हूँ।”

करोड़ीराम ने कहा, “पहले खाना तो खा लीजिए, आप काफिर दूर से यहाँ मेरे पास आए हैं, निश्चित ही आप थके और भूखे होंगे। पहले आप भोजन कर लीजिये, फिर बात करेंगे।” उसके बाद दोनों भोजन करने के लिए पास मे स्थित एक होटल में गए।

करोड़ीराम ने होटल के मालिक से पूछा, “यहाँ की रोटियाँ कैसी हैं?”

मालिक ने कहाँ, “अरे, क्या कहूँ साहब, रोटियाँ ऐसी नरम हैं, जैसे डबलरोटियाँ हों।”

सेठ ने कहा, “चलो मुनिराज, रोटी खाने के बदले डबलरोटी ही खाएँ।” दोनों चल पड़े। आगे चलकर एक डबलरोटी वाले से करोड़ीराम ने पूछा, “भाई, डबलरोटी कैसी है तुम्हारे पास?”

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डबलरोटी वाले ने कहा, “सेठ जी, हमारे यहाँ ताजी डबलरोटी ही मिलेगी और ताजी भी ऐसी, जैसे बिस्कुट हों।”

करोड़ीराम ने मुनिराज से कहा, “चलिए मुनिराज जी, बिस्कुट जैसी डबलरोटी खाने से अच्छा है, बिस्कुट ही खाएँ”

कुछ दूर चलने के बाद एक दूकान दिखी, करोड़ीराम और मुनिराज उस दुकान मे प्रवेश करते हैं और करोड़ीराम ने फिर दूकानदार से पूछा, “भाई, तुम्हारे बिस्कुट कैसे हैं?”

दूकानदार बोला, “साहब, बिस्कुट क्या है, मक्खन है, मक्खन । कहिए, कितने दूँ ?”

करोड़ीराम ने मुनिराज की तरफ देखा और कहा, “फिर बिस्कुट खाने से तो मक्खन खाना ही ठीक रहेगा।”

अब दोनों कंजूस पहुँचे मक्खन की दूकान पर, और वहाँ बैठे मक्खन विक्रेता से पूछा, “बोलो भाई, तुम्हारा मक्खन कैसा है ?”

मक्खनवाले ने अपने मक्खन की विशेषता बताते हुये कहा, “मक्खन को मक्खन मत समझिए, मेरा मक्खन तो गंगाजल हैं बाबूजी। मुँह में गया नहीं कि पिघल गया, जैसे गंगाजल पिया हो।”

करोड़ीराम ने कहा, “चलिए मुनिराज जी, यदि मक्खन गंगाजल के समान है, तो फिर बेहतर है कि गंगाजल ही पिएँ।”

और इस तरह करोड़ीराम अंत में मुनिराज को गंगा के तट पर ले गया। मुनिराज को पानी दिखाकर कहा, “पीजिए सेठ जी, गंगाजल कितना स्वादिष्ट है। इसमें एक साथ मक्खन, बिस्कुट, डबलरोटी और रोटी का स्वाद मिल जाता है। “फिर पूछा, “हाँ तो सेठ जी, आप मुझसे कौन-सी सलाह चाहते हैं ?”

मुनिराज ने गंगाजल पीकर चारों तरह का स्वाद पा लिया था। वे बोले, “सलाह मिल चुकी है करोड़ीराम जी, धन्यवाद ।”

सेठ करोड़ीराम ने कहा, “तो फिर चलिए मुनिराज जी, ठंडा गंगाजल अधिक पिएँगे, तो सरदी लग जाएगी और डाक्टरों का बिल भरना पड़ेगा। फिर इस जल में चार स्वाद भी शामिल हैं। ज्यादा पीने से कहीं अपचन न हो जाए।”

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दोनों कंजूस एक दूसरे से विदा होकर आपने अपने निज स्थान आ गए।

इस कहानी से शिक्षा

  1. कंजूस व्यक्ति के पास जितना भी धन होता हैं वह उससे संतुष्ट नहीं हो पता हैं और न ही उसका उपभोग (इस्तेमाल) कर पता हैं।
  2. कंजूस व्यक्ति पैसे को बचाने के लिए, छोटी छोटी खुशी से वंचित रह जाते हैं।

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