महात्मा गांधी के बचपन का किस्सा है। गांधी जी बचपन से ही जो काम करते, वे पूरे उत्साह के साथ करते थे। बालक मोहनदास के पिता करमचंद गांधी का ट्रांसफर राजकोट हो गया था।
मोहनदास भी पोरबंदर से राजकोट पहुंचे। उनके पिता बहुत प्रतिष्ठित थे। एक बार किसी समारोह में मिठाई बांटी जा रही थी। लोगों ने बालक मोहनदास से कहा, ‘आप भी ये मिठाई बांट दीजिए।’
बालक ने मिठाई ले ली। उनके घर के पास एक सफाईकर्मी रहा करता था। बालक गांधी उसे रोज सफाई करते देखते तो बहुत प्रसन्न होते थे। सबसे पहले मिठाई लेकर गांधी जी उसी के पास पहुंचे।
सफाईकर्मी अपनी छोटी सी झोपड़ी में रहता था। बालक ने सफाईकर्मी को बुलाया और कहा, ‘आप मिठाई लीजिए।’
सफाईकर्मी ने सोचा कि ये तो बच्चा है, अगर मैंने मिठाई ले ली तो कई लोग गुस्सा हो जाएंगे। उसने कहा, ‘आप नहीं जानते, मैं ये मिठाई नहीं ले सकता।’
मोहनदास बच्चे थे, लेकिन बहुत समझदार और थोड़े जिद्दी भी थे। सही बात के लिए वे किसी से भी अड़ जाते थे। उन्होंने पूछा, ‘आप मिठाई क्यों नहीं ले सकते?’
सफाईकर्मी बोला, ‘मामला छूत-अछूत का है। हमारी सामाजिक स्थिति नहीं है।’
गांधी बोले, ‘आपको मिठाई लेनी ही होगी।’ गांधी जी ने उसका हाथ पकड़ा और हाथ में मिठाई दे दी। सफाईकर्मी रो दिया, लेकिन आसपास के लोग हैरान हो गए और शिकायत की मुद्रा में आ गए। ये बात गांधी जी के पिता करमचंद जी तक पहुंची।
मोहनदास ने सब के सामने कहा, ‘अगर हमारे देश में, समाज में मिठाई वितरण में जाति, ऊंच-नीच देखी जाएगी तो फिर ये किसका भोग था? किस ईश्वर को हम पूजते हैं?’
गांधी जी ने उसी समय विचार किया कि जब मेरा वश चलेगा, मैं ये भेदभाव मिटा दूंगा।
सीख – ईश्वर ने सभी इंसानों को एक समान बनाया है। भाग्य, परिश्रम और योग्यता की वजह से सभी इंसानों की स्थिति अलग-अलग हो गई है, लेकिन फिर भी किसी भी तरह का भेदभाव नहीं करना चाहिए। खासतौर पर अन्न के मामले में पक्षपात न करें, क्योंकि किसी भूखे को खाना देना भी एक तरह की पूजा ही है।