भितरी गाँव मे दीपक नाम का एक सेठ रहा करता था। उसकी रीवा मे कई दुकाने थी। इसलिए वह रीवा मे ज़्यादातर ठहरता था। कभी कभार ही वह भितरी आया करता था। भितरी मे उसके पास चार एकड़ जमीन थी, इस जमीन मे उसने सब्जी-भाजी लगवा रखी थी। जमीन के देखभाल के लिए उसने दो नौकर रखे हुये थे। एक का नाम हरिया और दूसरे का नाम धनिया था। जो खेतो मे सब्जी-भाजी लगा कर उनकी देखभाल किया करते थे। सेठ का भतीजा गौरव रोज सब्जी की बिक्री कर के खाते मे पूरा हिसाब लिख लिया करता था।
एक दिन सेठ अपने गाँव भितरी आया, और खेत का भ्रमण करने लगा, खेत मे दोनों नौकर काम मे व्यस्त थे। मालिक को देख, दोनों ही सेठ के पास जा पहुंचे। मालिक को खेतो मे बहुत सी कमियाँ दिखी तो उन्होने नौकरो को डांटा। कई जगह सब्जियों को ठीक से पानी नहीं मिल रहा था, तो कुछ सब्जियों मे कीड़े लग गए थे।
सेठ के भतीजे गौरव ने भी सेठ को बताया की पिछले कुछ हफ़्तों से मुनाफा सही नहीं हो रहा हैं, इसके अलावा कई सब्जियाँ खराब होने की बजह से फेकी जा रही हैं। बस ये सुनते ही सेठ ने दोनों नौकरो को डांट लगा दी। सेठ ने फटकार लगते ही दोनों को कहा की -“सही तरह से काम करो नहीं तो काम छोड़ दो। मुझे काम मे लापरवाही बिलकुल भी पसंद नहीं हैं।” यह कह कर सेठ अपने गाँव वाले घर मे चला गया। सेठ जब भी गाँव आता तो वहाँ एक या दो दिन रुकता था।
शाम हो चुकी थी। सेठ घर के बाहर बने मिट्टी के एक चबूतरे मे बैठा था, और चाय पी रहा था। तभी धनिया वहाँ आ गया और सेठ को खेत मे हुई लापरवाही की सफाई देने लगा। उसने बताया की – “सारी गलती हरिया की हैं, वह पूरा दिन सोता रहता हैं, काम नहीं करता, मैं तो उसे समझता रहता हूँ, पर वह मेरी बात नहीं सुनता।”
सेठ को धनीया की बात पर विश्वास नहीं हुआ, क्योंकि सेठ किसी की सुनी सुनाई बातों पर यकीन नहीं करता था। पर धनियाँ ने हरिया के खिलाफ जो बाते बोली हैं उसका पता लगाना भी बहुत जरूरी हैं, ऐसा सोच कर सेठ सो गया। अगली दिन सुबह 8 बजे सेठ रीवा जाने की तैयारी करता हैं, हरिया ने खेत से तरह-तरह की सब्जी लाकर सेठ के गाड़ी मे रखी, सेठ भी जाते वक्त दोनों नौकरो को कुछ पैसे दे कर आंगे बढ़ जाता हैं।
सेठ के जाने के बाद धनिया और हरिया खेत मे आ जाते हैं, हरिया अपने काम मे लग जाता हैं। हरिया एक सीधा साधा आदमी था, वह ईमानदारी से खेत का सारा काम करता था, जबकि धनिया खेत मे दिनभर सोया करता था। हरिया के द्वारा किए कार्यो का श्रेय खुद ले लिया करता था। सेठ जब भी कोई ज़िम्मेदारी देते, तो धनिया आंगे आकर सारी ज़िम्मेदारी अपने कंधो मे ले लेता, पर सेठ के जाने के बाद वह पूरा काम हरिया से करवा कर पुरा श्रेय खुद ले लिया करता।
सेठ को भी कोई फर्क नहीं पड़ता था, क्योंकि उसका कार्य लगातार हो रहा था। पर इस बार सेठ को नुकसान तो हुआ ही साथ मे उसके एक नौकर पर काम न करने का इल्जाम लगा और इल्जाम भी उसी के दूसरे नौकर ने ही लगाया। इसलिए सेठ सही और गलत का फैसला करना चाहता था।
उसने ड्राईवर को बीच रास्ते पर ही गाड़ी को घूमा कर वापस गाँव चलने के लिए कहा। सेठ खेत मे अचानक जा कर देखना चाहता था, की धनिया ने सही कहा था या फिर झूठ।
इधर खेत मे धनिया बेफिक्र था की सेठ चले गए हैं, इसलिए उसने बगीचे मे लगे एक आम के पेड़ के नीचे खटिया बिछाई और घोड़े बेच कर सो गया।
जब धनिया गहरी नींद मे था, उसी समय हरिया कड़ी धूप मे नई सब्जी लगाने के लिए मट्टी जोत रहा था। तभी सेठ पैदल ही चुपके से खेत मे आए तो उन्होने देखा की धनिया तो मजे से सो रहा हैं और हरिया कड़ी धूप मे मट्टी जोत रहा हैं।
तभी धनिया की नींद खुली तो उसने देखा की दीपक सेठ वही पर खड़े, उसे देख रहे थे। धनिया को समझ आ गया की सेठ सब सच्चाई जान चुके हैं और उसने बिना देरी किए हुये, सेठ के पैर पकड़ लिए। और अपने गलतियों के लिए माफी मांगने लगा।
सेठ नरम दिल का था, उसने धनिया को माफ कर दिया और आंगे से ऐसी गलती न करने की चेतावनी दी। धनिया भी उस दिन से सुधर गया। और काम चोरी बंद कर दी और सेठ ने हरिया को बुलाकर उसके द्वारा की जाने वाली कड़ी मेहनत के लिए उसे इनाम दिया।