चम्पक नाम का खरगोश सुंदर वन मे रहता था, वह बहुत ही शान्तिप्रिय और स्वभाव से सीधा था। उसे जंगल मे किसी से कोई मतलब नहीं रहता था, वह अपने ही धुन मे लगा रहता था।
चम्पक के पड़ोस मे एक बंदर रहता था, वह पूरे जंगल मे नेतागिरी करता रहता था। उसका घर चम्पक खरगोश के बगल मे ही बनवाया था, उसे अपने घर मे बहुत घमंड रहता था, उसे लगता था की उसके जैसा घर पूरे जंगल मे किसी और का नहीं हैं।
जंगल का कोई भी जानवर अगर धोखे से भी उस बंदर के घर के आसपास कचड़ा डाल देता तो बंदर उस बात को लेकर विवाद कर देता था।
जंगल मे अगर कोई जानवर अपना घर बनवा रहा होता, तो बंदर वहाँ पहुँच कर नेता गिरि करने लगता था। वह लोगो के घरो को बनने मे अड़ंगा डालने का भरसक प्रयास करता था।
जंगल के सभी जानवर उस बंदर से परेशान थे, पर आपसी व्यवहार को बचाये रखने के लिए कुछ नहीं बोलते थे।
बंदर के घर मे और कई जानवर किराए से रहते थे। बंदर और उसके किरायेदार अपने घर का कचड़ा चम्पक खरगोश के घर के सामने ही फेकते थे। चम्पक जब भी मना करता तो वो लड़ने को तैयार रहते थे।
चम्पक खरगोश ने कुछ दिन गुस्से मे आकार अपने घर का कचड़ा बंदर के घर के सामने फेकना चालू कर दिया। पर चम्पक थोड़ा धार्मिक स्वभाव का था, वह भगवान से डरता था, इसलिए उसने सोचा की यह ठीक नहीं हैं, अगर कोई नासमझ हैं तो खुद भी उसकी तरह नासमझ नहीं बनना चाहिए।
इस लिए चम्पक ने बंदर के घर के सामने कचड़ा फेकना बंद कर दिया। पर बंदर और उसके किरायेदार रोजाना चम्पक खरगोश के घर के सामने कचड़ा फेक कर चले जाते।
यह देख कर खरगोश को बहुत दुख होता, इसलिए वह भगवान के ऊपर ही छोड़ दिया, की भगवान ही इस मंदबुद्धि बंदर का इलाज करेंगे।
धीरे धीरे चम्पक के घर के सामने कचड़े का ढेर लग गया। जनवरी का महिना था , खिचड़ी का त्योहार आने को था, इस महीने मे सुंदर वन मे काफी हवा चलती हैं, और इन हवाओ की वजह से चम्पक के घर के सामने लगा ढेर उड़-उड़ कर बंदर के घर मे सामने जमा होने लगा। और देखते देखते चम्पक के घर के सामने लगा पूरा कचड़ा साफ हो गया, और पूरा कचड़ा बंदर के घर के सामने फैल गया। बंदर ने जब अपने घर के सामने कचड़ा फैले देखा तो उसे समझ मे आ गया की, दूसरों के साथ अगर बुरा करेंगे , तो एक दिन वही, हमे सूत समेत वापस मिलेगा।
उस दिन के बाद बंदर ने दूसरों के घर के सामने कचड़ा फेकना बंद कर दिया।