मंगल वन मे बीरू नाम का एक भालू रहता था। वह बहुत ही गुमक्कड़ किस्म का भालू था, वह पूरा दिन जंगल मे यहाँ वहाँ घूमता रहता था। जंगल के अन्य जानवर दिन भर अपना काम करते और शाम को अपने परिवार के साथ समय व्यतीत करते थे। पर बीरू भालू शाम होते ही जहां ठिकाना मिलता वही सो जाता और सुबह होते ही फिर यहाँ वहाँ घूमता रहता।
जंगल के दूसरे जानवर उससे बहुत परेशान थे, क्योंकि बीरू भालू कोई काम नहीं करता था। ऊपर से दिन भर किसी न किसी जानवर को बाते करने के लिए खोजता रहता था, अगर एक बार कोई जानवर उससे बात करना प्रारम्भ कर देता था तो बीरू की बाते पूरा दिन चलती थी। यानि की बीरू अपना समय तो बर्बाद करता ही था, साथ मे दूसरे जानवरो का भी बर्बाद करता था।
जून का महिना चल रहा था, जंगल के सभी जानवर बारिश के मौसम के लिए खाना जमा करने मे लगे रहते और शाम होते ही अपने घर की मरम्मत करते, जिससे बारिश के मौसम मे उन्हे कोई दिक्कत न हो। पर बिरू भालू को बारिश के मौसम की कोई फिक्र नहीं थी। डब्लू भालू रोज बीरू को टोका करता, की बारिश का मौसम आ रहा हैं अपने लिए एक मजबूत और अच्छा सा रहने का कोई ठिकाना खोज लो, पर बीरू के कानो मे जू तक नहीं रेंगती थी।
एक रात बीरू भालू मजे से सो रहा था, तभी जोरों से बारिश होने लगी, यह मानसून का आगमन था, मंगलवान मे मानसून की पहली बरसात तीन से चार दिन तक होती हैं, बीरू भालू पानी मे पूरी तरह से भीं गया, वह हरतरफ भटकने लगा, दूसरे जानवरो के घरो मे रुकने की प्रार्थना करने लगा पर किसी ने उसकी मदद नहीं की, वह लगातार तीन दिन तक पानी मे भूखा प्यासा भींगता रहा। इन तीन दिनो मे बीरू भालू के पेट मे अन्न का एक दाना भी नहीं गया था। वह बहुत भूखा था। अब उसे अपनी गलती का एहसास हुआ, उसे डब्लू भालू की बात समझ मे आ गई। उसने कसम खाई की बारिश बंद होते ही वह अपने लिए सबसे पहले रहने का एक अच्छा ठीकना खोजेगा, और उसके बाद पूरी बारिश के लिए खाने का इंतेजाम करेगा।
कहानी के लेखक – गीतांजलि गौतम