Gitanjali ki Kahani – कंजूस चीकू और भंडारा

Gitanjali ki Kahani – कंजूस चीकू और भंडारा

गंगापुर कालोनी मे चीकू नाम का खरगोश रहता था। वह बहुत ही ईमानदार और अनुशासित खरगोश था। पूरे कालोनी के जानवर चीकू की बहुत ही इज्जत करते थे पर उसकी एक आदत से परेशान थे। चीकू बहुत कंजूस था, वह हर चीज मे कंजूसी करता था।

एक बार उसके पिता चम्पक खरगोश चरधाम की यात्रा कर के लौटे, तो पूरे कालोनी के जानवर और पक्षी चम्पक खरगोश से मिलने उनके घर गए, मोहले का सबसे बुद्धिमान माना जाने वाला भोला तोता भी चम्पक से मिलने पहुंचा। भोला तोता, धर्म का बहुत ही जानकार पक्षी था। पुजा पाठ से संबन्धित कोई भी जानकारी लेनी होती तो कालोनी के सभी जानवर और पक्षी भोला तोता के पास ही जाया करते थे।

भोला तोता ने चीकू को पास बुलाया और कहा की “तुम्हारे पिता चम्पक चारधाम से यात्रा कर के आए हैं, परंतु चारोधाम की यात्रा का फल तब तक नहीं मिलता, जब तक यात्रा करने वाला घर आ कर हवन और भंडारा न कराये, इसलिए अगले सोमवार को हवन करा कर भंडारा करा दो।”

चीकू बहुत ही धार्मिक खरगोश था। वह तुरंत तैयार हो गया।

चीकू भंडारे और हवन की तैयारी करने लगा, लेकिन आदत के अनुसार हवन और भंडारे की सामाग्री मे उसने कंजूसी की और भंडारे के लिए उसने सस्ते चावल-दाल खरीदे, इसके अलावा आटा और सब्जी मे भी उसने कंजूसी की।

भंडारे का दिन आ गया पूरा कालोनी भंडारे के तय समय मे भोजन के लिए चीकू के यहाँ आ गया, और भंडारे मे कार्य कर रहे लोगो ने खाना परोसना चालू कर दिया।

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जैसे ही लोग पूरी सब्जी खाने लगे, तो पूड़ी का स्वाद कसैला था, तथा सब्जी मे आलू मटर कम और पानी ज्यादा था। लोगो की पूड़ी और सब्जी खाने की हिम्मत नहीं हुई फिर भी संकोच मे लोगो ने दो-दो पूड़ी खा ली, और सोचा चलो कई बार पूड़ी का आटा कडुआ हो जाता हैं, चावल दाल ही खा के आज के भंडारे का आनंद लेते हैं, पंगत मे बैठे लोगो ने चावल-दाल मंगवाया, उनकी मांग सुन कर चावल-दाल परोसे गए, लोगो ने जैसे ही चावल-दाल खाया, उसमे कंक्कड़ के अलावा कुछ नहीं था।

अब धीरे धीरे खाने के बारे मे बात पूरे कालोनी मे फ़ेल गई, और  जिन लोगो को खाने के बारे मे पता चलता वो, लोग बिना खाये ही अपने घर चले जा रहे थे, जल्द ही चीकू का पूरा घर खाली होगया, सभी मेहमान बिना खाये ही चले गए।

चीकू को बहुत नुकसान हुआ, पूरा का पूरा खाना बचा रह गया। मुश्किल से 20 से 25 लोगो ने ही भंडारे मे खाना खाया था। जबकि भंडारे का भोजन 400 लोगो के हिसाब से बना था। पूरा खाना बेकार गया साथ मे लोग उसके कंजूसी का मज़ाक भी उड़ाने लगे थे।

चीकू खरगोश को अपनी गलती पर बहुत अफसूस हुआ, और उसे यह अपनी गलती का ज्ञान होगया। उसने निश्चय किया की अब से वह कंजूसी नहीं करेगा। उसने पूरे मोहल्ले से माफी मांगी और फिर से उसने पूरे मोहले को भंडारे मे बुलाया, और इसबार उसने भंडारे के लिए आए सभी सामाग्री को अच्छी दुकान से खरीदा था।

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शिक्षा – पैसा सब बचाते हैं, पर ऐसे पैसा नहीं बचना चाहिए जिससे की हमारा ही नुकसान हो, और लोग हमारा परिहास उड़ाए। कई बार हमारी कंजूसी हम पर ही भरी पद जाती हैं। इस लिए कंजूसी और बचत दोनों के बीच का अंतर जरूर समझे।