रीवा विंध्यप्रदेश की राजधानी हुआ करती थी, आज इसकी पहचान घट कर सिर्फ सफ़ेद शेर की भूमि मात्र रह गई हैं। इसी शहर मे वैभवी अपनी मम्मी और छोटी बहन के साथ रहा करती थी, पापा, सेना मे बहुत बड़े अधिकारी थे, उनका कोई निश्चित स्थान मे ड्यूटि नहीं थी, लगातार बदलती रहती थी, कभी जम्मू तो कभी असम, इसलिए वैभवी के पापा ने अपने परिवार को रीवा मे छोड़ दिया था, जिससे वैभवी और उसकी छोटी बहन की पढ़ाई मे कोई बाधा ना आए।
रीवा मे वैभवी के फूफा भी रहते थे, वैभवी के फूफा विश्वविद्यालय मे शिक्षक थे, रीवा के ही विश्वविद्यालय मे वो बच्चो को पढ़ाया करते थे।
वैभवी को जब स्कूल से दो चार दिन की छुट्टी मिलती थी, तो वह अपने फूफा के यहाँ चली जाया करती थी, हालांकि वैभवी की अपनी बुआ से ज्यादा बनती थी। पर बुआ घर के काम मे व्यस्त रहती इसलिए वैभवी की धीरे धीरे फूफा से दोस्ती हो गई। फूफा की उम्र 31 वर्ष थी फिर भी उनके अंदर का बचपन नहीं गया था। वह छोटे बच्चो के साथ खुद भी छोटे हो जाया करते।
वैभवी और फूफा मे एक बात की समानता थी। वह दोनों ही, समोसा, नमकीन और मैगी को बहुत मानते थे। जब भी फूफा विश्वविद्यालय से लौटते तो वैभवी को समोसा या कुरकुरे ले कर आते। और खुद भी ठूंस ठूंस कर खाते।
समोसा खाने के बारे मे कई बार उन्हे देख कर लोग सोच मे पड़ जाते की फूफा और वैभवी मे छोटा कौन हैं। दोनों ही समोसा को लेकर बहुत लालची थे। घर के सब लोग वैभवी को समझाया करते की बाहर का खाना इतना नही खाते, नुकसान करता हैं। पर वैभवी नहीं मानती थी। वैभवी का चाचा भी एक नंबर का समोसा खाने वाला व्यक्ति था। वह भी खूब समोसे खाता। इसलिए उनकी संगत मे रह कर वैभवी को भी बाहर का चटरपटर बहुत पसंद था।
एक बार बड़े दिन की छुट्टी थी। वैभवी अपने फूफा के यहाँ 15 दिन रुकी, इस दौरान वैभवी और फूफा ने इतना समोसा, मैगी और कुरकुरे खाया की फूफा के पेट मे जोरों का दर्द हो गया, फूफा दिन भर पेट पकड़े रोते रहते, उनकी हालत देख कर वैभवी को समझ आ गया की, बाहर का खाना चाहे जितना भी स्वादिष्ट हो, पर वह नुकसान करता हैं। बाहर के खाने मे तेल मसाला बहुत डाला जाता हैं जो शरीर को नुकसान पहुँचती हैं।
अब वैभवी ने, यह निश्चय किया की वह बाहर का खाना नहीं खाया करेगी, और घर मे जो भी बाहर का खाना खाते, वैभवी उन्हे भी मना कर दिया करती, और उन्हे समझती की बाहर का खाना नहीं खाना चाहिए।