फचाटी मियां को भला गाँव में कौन नहीं जानता। वे गाँव भर की समस्याएं सुलझाने में माहिर थे। गाँव में किसी के यहां कोई घटना घटी नहीं कि वे बिना बुलाए हाजिर। कोई माने या न माने, वे जाकर अपनी कीमती सलाह दे ही डालते थे। समस्या चाहे किसी भी तरह की हो, वे उसका समाधान ढूंढ़ने में लग जाते थे। जब तक समाधान मिल नहीं जाए, वे चैन से नहीं बैठते थे।
संयोग की बात है, जिसे गांव भर की समस्याएँ सुलझाने का गर्व था, वही फचाटी मियां एक दिन खुद एक गंभीर समस्या में फंस गए। पड़ोसी गांव के मुखिया के यहाँ उत्सव था। उत्सव में बहुत से लोग आमंत्रित थे। फचाटी मियां को भी उत्सव के लिए बुलावा आया था। बुलावा आने पर फचाटी मियां को बहुत आश्चर्य हुआ। अपने दिमाग पर जोर देकर सोचने लगे। हाथ से भी अपना माथा ठकठकाया। इधर दबाया, उधर दबाया, फिर भी उन्हें याद नहीं आई कि इससे पहले किसी ने उनके यहां बुलावा भेजा हो। मौके-बेमौके वे स्वयं किसी के यहां भी पहुँच जाते थे। किसी को उन्हें बुलाने की जरूरत ही नहीं पड़ती थी।
कहीं से बुलावे का आना, फचाटी मियां की जिंदगी का पहला अनुभव था। इसलिए उन्होंने सोचा कि ऐसे अवसर का अधिक से अधिक लाभ उठाया जाए। फचाटी मियां के पाँच बच्चे थे। उन्होंने अपने सभी बच्चो को मुखिया जी के यहाँ उत्सव में चलने के लिए कह दिया।
अपने हाथों फचाटी मियां ने बच्चों को नहलाया-धुलाया। बक्से में दबे कपड़े निकालकर बच्चों को पहनाए। खुद भी पहने। उत्सव में जाने की बात सोचकर सभी बच्चे उत्साहित थे।
फचाटी मियां कहीं भी जाते तो कत्थई रंग की शेरवानी और चूड़ीदार पजामा पहना करते थे। सिर पर झालरदार टोपी हुआ करती थी। हाथ में बकुलिया छड़ी और नाक पर कमानीदार चश्मा तो हमेशा रखते थे। तैयार हो जाने के बाद उन्होंने आदमकद शीशे के सामने खड़े होकर दाढ़ी में कंघी की, और एक बार अपना पूरा डीलडौल देखा। जब वे आश्वस्त हो गए कि डीलडौल में कहीं कोई कमी नहीं है, तो चल दिए।
दरवाजे पर खड़े होकर फचाटी मियां ने एक-एक बच्चे को गिनकर घर से बाहर किया। जब पांचों बच्चे बाहर चले गए, तो वे भी बाहर निकले। पत्नी उन सबों को विदा देने के लिए दरवाजे पर खड़ी थी। चलते समय फचाटी मियां ने अपनी पत्नी को ताकीद की, “फिर याद कराए देता हूँ, हम सबों का खाना मत बनाना।”
मुखिया जी के यहां दूर-दराज के गाँवों से भी लोग आए हुए थे। फचाटी मियां के पहुंचने पर सबों ने खड़े होकर उनका स्वागत किया। मुखिया जी ने भी उनकी काफी आवभगत की।
उत्सव काफी देर तक चलता रहा। फचाटी मियां की उत्सव में अच्छी जमी। उत्सव खत्म होने में देर थी, फचाटी मियां ने देखा कि कछ देर और ठहरे तो शाम हो जाएगी। देर होने पर रात भी हो सकती है। रात होने पर छोटे बच्चों के साथ घर वापस जाने में कठिनाई होगी। यह सोचकर, उन्होंने मुखिया जी से जाने की इजाजत मांगी। मुखिया ने फचाटी मियां व उनके बच्चों को खिला-पिला कर इजाजत दे दी।
जल्दी-जल्दी करने के बावजूद शाम हो ही गई। फचाटी मियां के साथ छोटे-छोटे बच्चे थे। इसलिए उन्होंने अपने गांव का शॉर्टकट रास्ता पकड़ा। रास्ते में एक छोटी-सी नदी पड़ती थी।
सावधानी बरतने में फचाटी मियां अपने को एक समझते थे। नदी की चौड़ाई कम थी। उसमें पानी भी कम था, लेकिन पानी की धार तेज थी। बच्चों को नदी पार कराने से पहले उन्होंने नदी की गहराई माप लेना जरूरी समझा। पाजामा निकाल कर कंधे पर रख लिया और अंडरवियर पहने वे नदी में उतर गए। धीरे-धीरे नदी पार करते हुए उन्होंने नदी की गहराई माप ली। नदी कोई बहुत गहरी नहीं थी। गहराई कहीं कम थी तो कहीं अधिक। नदी की अधिकतम गहराई कमर से एक फीट नीचे ही थी।
फचाटी मियां के साथ छोटी-बड़ी हर उम्र के बच्चे थे। बच्चों की ऊंचाई में भिन्नता थी। दो बच्चे तो बिल्कुल छोटे थे।
बचपन में फचाटी मियां ने कुछ दिनों तक गणित पड़ा था। गणित में पढ़ाया गया औसत उन्हें अचानक याद आ गया। औसत की याद आने भर की देर थी। उन्होंन झट अपनी छड़ी को उंगलियों से माप कर पैमाना बनाया और अपनी तथा अपने बच्चों की ऊँचाई का एक औसत निकाल लिया। फिर उन्होंने नदी की गहराई का भी औसत निकाल लिया। उन्हें यह देखकर बहुत खुशी हुई कि बच्चों की औसत ऊँचाई नदी की औसत गहराई में काफी अधिक है। इसलिए सभी बच्चों को एक साथ लेकर नदी पार करने में उन्हें कोई परेशानी दिखाई नहीं दी। ऊंचाई के हिसाब से फचाटी मियां ने अपने सभी बच्चों को सिलसिलेवार खड़ा किया। छोटे बच्चे अधिक पीछे और बड़े बच्चे आगे खड़े थे। सबसे आगे फचाटी मियां स्वयं खड़े हो गए। बच्चों को एक-एक कर नदी पार करने का आदेश देकर फचाटी मियां इंजन की तरह आगे बढ़ गए। लड़के रेलगाड़ी के डिब्बों की तरह अपने अब्बाजान के पीछे हो लिए।
नदी पार करने के बाद फचाटी मियां ने पीछे मुड़कर देखा। उनके होश उड़ गए। उनके तीन बड़े बच्चे नदी पार कर गए थे, लेकिन दो छोटे बच्चे दिखाई नहीं दे रहे थे। एक जगह खड़े-खड़े अपनी निगाह नचा-नचा कर वे नदी के आसपास दोनों छोटे बच्चों की तलाश करने लगे। कुछ ही क्षण में उनकी निगाह नदी की दाहिनी तरफ जाकर अटक गई। उनके दोनों बच्चे नदी की धार में बहे जा रहे थे।
अभी फचाटी मियां कुछ सोच ही रहे थे कि वहां गाँव के कुछ लोग आ गए। नदी पार करते समय उन लोगों ने फचाटी मियां के दोनों बच्चों को बहते हुए देखा। गाँव के लोगों ने दोनों बच्चों को नदी से बाहर निकाला। दोनों बच्चों को देखकर भी फचाटी मियां पूर्ववत् खड़े रहे। उदास मन से वे कभी नदी की ओर ताक रहे थे, तो कभी दोनों बच्चों की ओर। फिर ने अपनी छड़ी की ओर भी ताक लेते थे।
फचाटी मियां को उदास खड़े देख गाँव का एक व्यक्ति बोला, “क्यों मियां, क्या बात है ? नदी में बहते हुए बच्चे निकल गए। अब क्यों उदास खड़े हैं ?”
“भाई, क्या बताऊं? एक समस्या में फँस गया हूं।” मुँह लटकाए हुए फचाटी मियां बोले।
फचाटी मियां ने नदी की औसत गहराई और बच्चे सहित अपनी औसत ऊंचाई की पूरी बात उन लोगों को बता दी।
“समस्या यही है कि मुझे अपनी गलती समझ में नहीं आ रही है।” फचाटी मियां ने कहा, “मैं नहीं समझ पा रहा हूँ कि गलती नदी की गहराई मापने में हुई या उसका औसत निकालने में।”
गाँव के लोग फचाटी मियां की बातें सुनकर मन ही मन खूब हँसे। लेकिन उनकी क्या मजाल कि वे फचाटी मियां की बात पर उनके सामने हँस सकें।
नदी में डूबने से बच गए दोनों बच्चे भी वहीं खड़े थे। फचाटी मियां उन दोनों बच्चों से बेखबर अपनी समस्या के बारे में सोच रहे थे। समस्या के समाधान के लिए फचाटी मियां ने दोबारा औसत निकालना जरूरी समझा। उन्होंने पहले बच्चों की और अपनी ऊँचाई माप ली। उसके बाद वे नदी में घुसकर उसकी गहराई मापने लगे।