वर्ष 2010 में, मैं इंदौर से अपने शहर ट्रेन से आया था। यह बात बहुत पुरानी हैं, उस समय, मेरे शहर का रेलवे स्टेशन काफी सुनसान जगह पर स्थित था। ट्रेन 11 बजे रेलवे स्टेशन पहुंची थी, इस वजह से स्टेशन पर ज्यादा चहल-पहल नहीं थी। मैं पैदल ही रेलवे स्टेशन से मुख्य सड़क तक जाने लगा। मुख्य सड़क से मैं कोई आटो लेकर अपने घर चलूंगा, ऐसा सोच कर मैं पैदल ही चलने लगा।
मैं एकदम अकेला था। आसपास कोई नहीं था। सिर्फ मैं और अंधेरा। मुझे कुछ भी सुनाई नहीं दे रहा था। सिर्फ मेरी सांस की आवाज। मैं धीरे-धीरे चल रहा था। मुझे थोड़ा डर लग रहा था, लेकिन मैं अकेले नहीं जाना चाहता था।
तभी मुझे ऐसा एहसास हुआ कि कोई आहट मेरे पीछे-पीछे आ रही है। मैं पलटकर देखा, तो कोई नहीं था। मैंने फिर से आगे बढ़ना शुरू किया।
थोड़ी देर बाद मुझे फिर से ऐसा एहसास हुआ। इस बार आहट थोड़ी तेज थी। मैं पलटकर फिर से देखा, तो कोई नहीं था।
मैं डर गया था। मैं तेजी से चलने लगा। मुझे लगा कि कोई मेरे साथ-साथ चल रहा है। मैं झाड़ियों के बीच से गुजर रहा था। मुझे लगा कि कोई झाड़ियों के पीछे से भी मेरे साथ-साथ चल रहा है।
मैं और भी तेजी से चलने लगा। मैं दौड़ने लगा। तभी मुझे लगा कि सड़क के किनारे लगी स्ट्रीट लाइट जलने और बुझने लगी। मुझे बहुत डर लग रहा था। मैं दौड़ता रहा।
तभी मैं मुख्य सड़क पर आ गया। यह सड़क काफी चहल-पहल वाली थी। मेरे पास से कई लोग गुजर रहे थे। मैं बहुत राहत महसूस किया।
मैंने पलट कर रेलवे स्टेशन वाली उस सुनसान सड़क को देखा। वहाँ पर कुछ दूर पर एक छाया मुझे दिखाई पड़ी जो झाड़ी के पास से निकल कर मेरी तरफ ही देख रहा था। उसका चेहरा बहुत स्पष्ट नहीं दिख रहा था, पर वह बिलकुल भी इंसानी चेहरा नहीं लग रहा था। उसका चेहरा बहुत ही बिगड़ा हुआ था, उसके चेहरे में उदासी और नफरत थी।
मैं बहुत डर गया। मैं तुरंत पलट गया और भागने लगा। मैं भागता रहा, जब तक कि मैंने आटो स्टैंड तक नहीं पहुंच गया।
मैंने एक आटो को रोका और उसमें बैठ गया। ऑटो वाला मुझे देखकर मुस्कुराया। उसने कहा, “बाबू जी, आपको भी झाड़ी वाला भूत दिखा क्या?”
मैं हैरान रह गया। मैंने पूछा, “तुम्हें कैसे पता?”
ऑटो वाले ने कहा, “यहाँ झाड़ी वाला भूत रहता है। रेलवे स्टेशन जाने वाले सभी आटो वालों को वह भूत दिख चुका है। मुझे भी कई बार दिखा है। इसलिए अब मैं रात को 8 बजे के बाद रेलवे स्टेशन नहीं जाता।”
मैंने पूछा, “झाड़ी वाला भूत क्या होता है?”
ऑटो वाले ने कहा, “यह एक बहुत ही दुखी और परेशान आत्मा है। यह एक बरगद के पेड़ में रहती थी। लेकिन एक दिन बिजली गिरने से वह पेड़ टूट गया। इस वजह से वह आत्मा बहुत गुस्से में है। उस भूत को लगता हैं की रेलवे स्टेशन में आने वाले लोगो ने ही उस बरगद का पेड़ काटा हैं। इस लिए वह झाड़ी मे रहने लगा और इस रेलवे स्टेशन में आने वाले लोगो को वह भूत लोगों को डराने लगा। कई बार तो उसने लोगो को लगभग मार ही डाला था।”
मैंने ऑटो वाले को पैसे दिए और अपने घर चला गया। मैं बहुत डर गया था। उस रात के बाद से मैंने कभी भी रीवा रेलवे स्टेशन वाली उस सुनसान सड़क से नहीं जाना चाहा।
यह कहानी डरावनी है, लेकिन यह एक संदेश भी देती है। यह बताती है कि हमें प्रकृति का सम्मान करना चाहिए और पेड़ों को नहीं काटना चाहिए।